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________________ 5955e विद्यानुशासन /5xe 259/506 यदि कोई पुरुष घूकारि (कौए की पूँछ से श्मशान के कपड़े पर अंगोर (कोयले) और कनक (धतूरे) के रस से तीसरी कला (इ) को लिखकर श्मशान में गाड़ दे (रख देवे) तो जब तक वह यहाँ गड़ी रहे तब तक ज्वर रहता है। कला चतुर्थकस्यांतनमिः प्रेत पढ़े लिखेत श्मशानांगर धत्तूर रसेला शुभ वेतसा प्रेतालये निधातव्यं लेखिन्या काक पक्षया, प्रेत ज्यरेण गृह्णाति मोक्षः स्यादु धृते सति || 98 || श्मशान के कपड़े पर श्मशान के अंगारे (कोयले) और धतूरे के रस से अशुभ बेला से चौथी कला (ई) के अन्दर नाम लिखे उसको कौए की पूंछ की कलम से लिखकर श्मशान में गाढ़ देये तो शत्रु को ज्वर होगा यदि उसको उखाड़ लिया जाए तो शत्रु अच्छा हो जाता है। ॐ ह्रीं ष्ट्रीं विकृतानन हूं शत्रु न्नाशय नाशय स्तंभय स्तंभय हुं फट ठः ठः ॥ त्रिसहस्र आप सिद्धं काशी मंत्र जपेद्रिपु देशात्, धातुर्थितो ज्वरः स्यात् शूलार्तियां रिपौः सद्यः ॥ १५ ॥ इस काली मंत्र का यदि तीन हजार जप से सिद्ध करके शत्रु के उद्देश्य से जपे तो शत्रु को तुरन्त ही चोथिया बुखार या दर्द का कष्ट होगा। नाम प्रयोजन दुतं वनं तु गैरिक प्रतिमां, अस्थी कृत्या विद्वाम सुग्धरो भवति दुस्साध्यः ॥ १६॥ यदि साध्या का नाम और प्रयोजन सहित गैरिक (गेरु) की प्रतिमा बनाकर उसको मिलाकर बींध दें तो उसको भयंकर रक्त बहने लगता है। अमुकाभंगमित्या सीत वद्धामित्यपि च सार्द्धमेतेन, मंत्रेण जपन प्रतिमां साध्याया विरचिता भूत्या इस मंत्र को जपता हुआ साध्य स्त्री की मूर्ति राख से बनाए। विदधीत मंत्र वादी वृद्ध भगां रक्तवर्णसूत्रेण, सहसैव भवेद्वद्ध छिद्र स्मर मंदिरं तस्याः ॥ १३ ॥ こちらもお 150525L PSPSPS ॥ १७ ॥ 1182 #1 こちとらぶ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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