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________________ OPIOISTRISTOTRIOSIS :JAATE DISPIRITOTECISIRIDDIES भक्तं स्वभक्त शिष्टं मंत्रेणानेन मंत्रितं, मंत्री दद्याद्धक्तानं तत् श्वासी श्वासात् प्रमुच्येत ॥१००॥ मंत्री अपने भोजन से शेष रहे हुए भोजन को इस मंत्र से अभिमंत्रित करके खिला देवे तो रोगी श्वास रोग से छूट जाता है। रवि दलतांतारगत गर्भपत्रे शांत मंत्र मंडमा कंठं, पीत्वा धम्म देशेष भासा विश्ॉविनश्यति ॥१०१॥ आक के पत्ते पर इस मंत्र को उपरोक्त प्रकार से लिखकर धूप में कंठ तक पीवे तो श्वास के सब रोग नष्ट होते हैं। रंभा कुंद शिरीषाणां कुसुमानि कणामपि, पिवे ज्येष्टा बुना पिष्ट्वा स्वशनाया शितोजनः ॥१०॥ श्वास रोग से पीड़ित पुरुष केले की जड़ और सिरस के फूलों को और पीपल को ज्येष्टांबु (तंदुलोदक) के साथ पीसकर पीये। श्वास काश विनाशार्थमऽशोत्कदली फलं, स्तुतं मूत्रे मता कांडमधवांगारपचितं ॥१०३॥ श्वास कास रोग के परिश्रम को नष्ट करने के लिये केले के फल और अमृता (गिलोय) को मूत्र में भिगोकर अथवा अंगारों पर पकाकर खावे। कणोष्णा निशा रास्ता मंडगोस्तनजं रजः, लीळं तैलेन कासानां श्वासानां च निवर्हणं ॥१०४॥ कणा (पीपल) उष्ण (सोंठ) निशा (हल्दी) रास्मा का मंड (सार) और गोस्तनी (मुना) के चूर्ण को तेल के साथ चाटने से श्वास और खांसी नष्ट होती है। हे हे तिष्ठ तिष्ठ बंधय वंधय वारय वारय निरुद्धं निरुद्धं पूर्ण माणि स्वाहा । वमिं विनाशयेदेष साक्षार्जाप्यादिना मनुः, यथा च सुंदरी धाम गल मध्ये विचिंतितं ॥१०५॥ इस सुंदरी धाम मंत्र का जप आदि चिंतवन से गले के बीज में ध्यान करने से यह वमन (उल्टी) रोग का नाश करता है। SSIRISTOISTRISTRI50505७५५ PASTRISTOTSPERISTORSCISS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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