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________________ CAPSPSPX विधानुशासन /59595959595 वन्हि मंडल मध्यस्थं नाम प्रणव संपुट कृत्वाभ वशकृर्द्वर्णान्नष्ट दिक्षु नियोजयेत् बाह्ये वह्नि पुरं दत्था लिखित्वा रोचनादिभिः, वेष्टियित्वाऽथ सूत्रेण वधीयात ज्वर वैरिणां अफ्रि मंडल के बीच में ॐ के संपुट में नाम लिखकर आठों दिशाओं में गजवशकरण (क्रौं) वर्ण को लिखे। फिर बाहर अग्रि मंडल को गोरोचन आदि से लिखकर इस यंत्र को धागे से लपेट कर बांधने से यह ज्वर के शत्रु का काम करता है । ॥ २९ ॥ का फो₹ की € 7 7 नाटा' को 7 7 7 7 7 7 ॥ २८ ॥ पंचम वर्गा चतुर्थं तू स्वर बिंदु संयुक्तं, बीजं एकांतरमुग्र ज्वरमपहरति करे निबद्धं चेत् पंचम वर्ग (त वर्ग) के चौथे अक्षर (घ) को चौथे स्वर (ई) और बिंदु सहित लिखकर हाथ में बांधने से यह एक दिन के अंतर से आने वाला उग्र ज्वर को नष्ट करता है । 113011 शिव भवने स्वीकार शीत ज्वर धारकस्य हृदि न्यस्तं, केवल भूषण ज्वरित मित्युदितं ज्वालनी कल्पे शीत ज्यर वाले पुरुष के हृदय में अग्रि मंडल के अन्दर स्थित इवीं को लिखने से वह गरमी से जलने लगता है ऐसा ज्वालामालिनी कल्प में कहा गया है। 1132 11 चूर्णेन पत्रे किल नागवल्या स्तेजोंकुश त्र्यंग धराक्षराणि, विलिरव्य पुंगैस्सह भक्षणेन सर्व ज्वरो नश्यति पश्य चित्रं ॥ ३२ ॥ नागर बेल के पान के पत्ते पर चूर्णे से तेज (ॐ) अंकुश (क्रौं) और त्र्यंगधर (ह्रीं) को लिखकर सुपारी के साथ खाने से सब प्रकार के ज्यरो को नष्ट करता है इसके आश्चर्य को देखो। esesese P15 ७४२ ららららゆったり
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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