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________________ ORDSTISIOSISTER विद्यानुशासन P15101512151015193510155 अशरणे फु: अशरण विशरणे फुः मंत्रेणानेन विकरेत सर्षपान्जभिमंत्रितान उच्चाटन विदप्युः स्ते मूषिकाणां क्षणादिव ॥११३॥ इस मंत्र से अभिमंत्रित सरसों को बखेरने से चूहों का उचाटन क्षण मात्र में हो जाता है। सुवर्ण दंष्ट्र वज़ दंष्ट्र मत्त वराह कुंजरे चु थ सिंह वराहं त्यस्थितवैवं सप्त कृत्वः सप्ताहं पठतुति सृषु संख्या सुमंत्रं ममुं गह मध्ये यद्यारवुच्चाटनं वांछेत् ॥११४ ॥ इस मंत्र को घर में खड़ा होकर तीनों संध्याओं में सात दिन तक सात सात बार पढ़ने से चूहों का उच्चाटन होता है। ध्यायेत ग्रहांगमरिवलं सर्पमयं जपतु हरति सन्मंत्री स्तंभश्च मूषिकाणां दूरं च गति स्तंभो भवति ॥११५ ॥ उस जपने के समय में उत्तम मंत्री सम्पूर्ण घर के आंगन को सर्पो से भरा हुवा ध्यान करे तो भागते हुए चूहों की गति का स्तंभन होता है। ॐ नमो भगवते वज्र शय मूर्षिक मग वराह कंटके रस चर भक्षय संतुफो वंद्य वंद्य वराह आज्ञापयति हुं फट || एतेन सहश्र त्रय जप सं सिद्धेन वेष्टितं पत्रे सर्पग्रस्तात्म मुख मूषिकामभिलिरिवतु मंत्रज्ञः ॥११६ ॥ इस मंत्र का तीन हजार बार जप करके पत्र पर करन से सिद्ध करने से अपने मुख में चूहे को खाये हुए सर्प का ध्यान करे। तत्पाने विन्यस्टोत् मध्ये गेहस्यवस्टा वद्वारवौ अचिरेण मूषिकाणां गण स्ततो दूर मुपद्याति ॥११७॥ उस पत्र को यगि बहुत चूहों वाले घर के बीच में डालकर बांध देवे तो तुरन्त चूहों का समूह घर से दूर भाग जाता है॥ सर्पशक्षस्थै चंद्रधनुरूदो वृष बिलस्य यस्य रवयेनेत् सप्तांगुलकार स्करकीलमद्यौ वेद्यमुपरिष्टान् ॥११८॥ /EN/$ಣದ ಆ83 BGSWWಥಳಥಳದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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