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विद्यानुशासन Asse
ॐ नमः सर्वमूषिकेभ्यो विश्वामित्र आज्ञापयति शीघ्रं गच्छंतु मूषिकाः स्वाहा ||
सहश्रतितय सं जाप सिद्धेन मनुना मुना कृतो जपादिनिःशेषं मूषिकानां विषं हरेत
॥ ५९ ॥
इस मंत्र को तीन हजार जाप से सिद्ध करके पढ़ने आदि से वह चूहे आदि के विष को पूर्ण रूप से नष्ट करता है.
रेरे श्वेत मूषिकः फु: कपिले फु: कपिले जट रुद्र पिंगल फु: हर हर विशं हर संहर फु: ॥
पुरश्चरण में तस्य लक्ष मान जगः स्मृतः मंत्रस्य गुरुभिः पूर्वे भवत् रूद्रोपि देवता
एतेन द्वात्रिंशद्वारान् जप्तं नीलेन्द्र यवैः पुष्पंमौनीभूत्वा घो मुखमभुक्तवान्
नूतमाखु विषेतु
॥ ६१ ॥
पहले इस मंत्र का एक लाख जप कर पुरश्चरण करके रूद्र देवता को प्रसन्न करे। फिर इस मंत्र से नीलेंद्र व पुष्पं (नीले इन्द्रजो के फूल) का भोजन करता हुआ नीचे को मुख करके चूहे के विष में बत्तीस बार जपे । इस वक्त मौन व्रत रखना जरूरी है।
हांतं विष्णु युतं चरमं युतं संलिख्य सष्ट वर्गस्य नाग दले सारगाते जग्धं वृष गरल विकृति हरं
॥ ६० ॥
॥ ६२ ॥
ष्ट वर्ग के अंतिम बीज को विष्णु सहित अंत में स्वाहा लगाकर अर्थात् श्रेष्ट मं नाग दल (नागरबेल का पान) पर लिखने से मृग के तेज और बैल के विष का विकार नष्ट हो जाता है।
ॐ मं विष्णु स्वाहा ॥
अथवा खुदष्ट गात्रस्य देशं कांडादिना दहेत् प्रादुष्यादन्यथा तीव्र वेदना तत कर्णतः
दध्वा च दंशाद्रुधिरं वृश्चिकादव संचयेत् पान नस्यादिकं पश्चात् विधा तव्यं चिकित्सितं
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॥ ६३ ॥
।। ६४ ।।
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