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________________ CTERIST05250TARI5 विधानुशासन DISTRISTRISPIRISTI सुरदारू (देवदारू) व महिषी (शूलीतृण) को महिषी (भैंस) के मूत्र में पीसकर एक बार लेप करने से मंडली सर्प के विष से पैदा हुई सौंफ (सूजन) का कष्ट दूर होता है। अजमूत्र सुसकृत्कोलेक पुरीषेर्लेपनं कृतं समये दर्बुद मखुमंडलि श्वेल संभवं ॥२०॥ बकरी का मूत्र सुअर व कुत्ते (कौलेयक) की पुरीष (विष्टा) का एक बार लेप कर देने से मंडली के विष से उत्पन्न हुयी अर्बुद (मांस) की गांठ को मखु (तुरन्त) ही शान्त कर देता है। इति मंडलि विष चिकित्सा झौं ह्रीं क्ष्मीं हुं फट स्वाहेत्य स्य मनो:कृत प्रजाप्यत् अचिरेणैव विलुपति विषमरिवलं राजिलादीनां ॥२१॥ इस मंत्र का मन में जाप करने से राजिल आदि का सम्पूर्ण विष शीध्र ही लुप्त हो जाता है। झौं ह्रीं क्ष्मी हुं फट स्वाहा राजिल दष्टः राजिल सर्प की औषधि कृष्णा सिंधुत्थौसाज्य गोमय स्वरसैः पिवतु सितबाणा पुंस्वा मूलं वा तद्दलाऽभोभिः ॥२२॥ राजिल सर्प के काटे हुए को कृष्णा(काली मिरच) और सिंधुत्य (सेंधा नमक) को गोबर के स्यरस से पिलावे या श्वेत सरपुंखा की जड़ को सरपुंखा के पत्तों के रस से पिलावे। वकुलास्थि युतं पीतं त्रिकटुकमपहरतिराजिल श्वेलं नंद्यावर्त शिफा वा पीताक्षीरेण नसि च कृता ॥२३॥ वकुल (मोली)की गुठली के साथ सोंट मिरच पीपल को पीने से राजिल का विष नष्ट होता है। या नंद्यावर्त (तगर) की जड़ को दूध के साथ पीवे तया नस्य भी देवे। भजन भस्मी भूतौ गुलिंकृतौ विश्वभव्य वंदारी आयौ घृत सहितौ लेह्यौ वा राजिल श्वेले ॥ २४ ॥ अथवा विश्व यंदार (सोंठ) भव्य वंदार (कमरख) को कूटकर उसकी भरम बनाये और फिर उस भस्म की गोलियों को धृत में मिलाकर सूंघने या चाटने से राजिल का विष नष्ट होता है। CSCDCASTOTSTOTHRISTOTS(६९५ PISCESSISTRISROTECISCISH
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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