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CHODRISTIBIOTICE विद्यानुशासन ISODIDISTRICISTORY नक्त(गुलेअब्बास) नीम और कड़वी तोरई के फल को गोमूत्र में पीसकर इक्कीस बार भावना देकर पीने नस्य लेने लेप करने से विष वेग दूर होता है।
चक्र चंदन राजास्थि नाग केशर पुष्करे: सज्येष्टवारि भिरगद सकलक्ष्वेल सूरनः
॥६३॥ चक्र (तगर) चंदन राजास्थि (आँवले की गुठली) भाग केशर पुष्कर (कमल) पानी से तैयार की हुयी दचा सबप्रकार के विष को नष्ट करती है।
हिंगु त्र्युषण गंधालसुनगुलिका कृता,
धान्यांबुकिल्कितैः सर्व विषकन्नाव नादिभिः ॥ ६४ ॥ हींग त्र्यूषण (सोंठ, मिरच, पीपल) गंधा (उग्रगंधा अजवाइन) लहसुन की चावलों के पानी से बनाये हुये कल्क को सूंघने आदि से सब प्रकार के विष नष्ट होते हैं।
निवास्थि तीक्ष्ण सिंधूत्थैरेकैक दयंशकैः क्रमात
साधितं साधयेत्साघु सपि सर्प विषोद्धति ॥६५॥ नीम की निमोली एक भाग तीक्ष्ण विष सिन्धूत्य नमक दो भाग सेंधा नमक को क्रमशः घृत में सिद्ध करने से सर्प का विष दूर होता है।
दलितं शिरीष बीजं दुग्धि दुग्धेन भावितं भूरि
पिप्पलिका चूर्ण युतं फणि योणस वृश्चिकादि विष हरणं ॥६६॥ सिरस के बीजों को दल कर (पीसकर) दूधी के दूध या आक के दूध की भावना देकर उसमें पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सर्प, बिच्छू आदि का विष दूर होता है।
अर्क रंभा सुतां गुंडी नागीशुलिं सुदर्शनां ईश्वरी मज्जकां सर्प रेखां वा हुः पथग्विषे
||६७॥ आक का दूध रंभा (केला) सुता (पितोजिया (गुंडी (निगुंडी) नागी (बाजास) शूलिं (शूली तृण) सुदर्शना (सुर्दशन) ईश्वरी (शियलिंगी)अर्जका (सफेद पलाश) का प्रयोग सर्प विष को नष्ट करने के लिये करे।
व्योष हय मार पीठा नीली मूलैस्तिलोत्ध संद्रावैः
भव्यस्य चर्मणा वा स कांजिकेनाहि विषनाश: ॥ ६८॥ SSIRISTOSTERSITE:512551275६८८ BISIOTSIOISO950150500