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________________ CASIRISTOISTRISIOISITORS विद्यानुशासन RSD5513152515015 पदम चतुर्द्धलो पेतं भूतांत नाम संयुतं, दलेषु शेष भू तानि त्रिर्मायायेष्टितं श्रुभं ||२५३|| एक चार दल वाले कमल की कर्णिका में नाम सहित आकाश बीज हा को लिखकर शेष दलो में बाकी भूताधार हा बीज लिखे और तीन बार माया हीं से वेष्टित करके क्रों से निरोध करे। ह्रींकार सं वेष्टित नाम वाह्ये हंसः पदं संविलिरव्येत्समतात, यंत्रेऽब्जपत्राणि भवंति चाऽष्टी मध्ये च तेषां सकल स्वरास्तु ॥ २५४ ॥ त्रियिया वेष्टयं ततों कुशेन सं रूप्य भूर्जे हिम कुंकुमाौः , वधातु हस्ते फणि दर जंतो विलिरव्य रक्षा भय रोग हारी ॥२५५ ॥ कर्णिका में हीकार से वेष्टित नाम के बाहर चारों तरफ हंस पद को लिखकर, आठ दल का कमल बनावे, जिसमें सब स्वर लिखे हुए हों। उसको तीन बार माया बीज से वेष्टित करके, क्रों से निरोध करे। यह मंत्र भोजपत्र पर चंदन और कुंकुम से लिखे और सर्प से उँसे हुये के हाथ पर बाँधने से रक्षा करता है, तथा भय और रोग दूर करता है। D हंसः हसः देवदत्त अ | ॐ ದಾರ್ಥಗಳು ೯೪೪ Vಣಸಣಣದಾದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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