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CTETRICISIODOI5015 विद्यानुशासन 9851055015DSCISION
अश्व गंधा शिफा क्लकं निपीय यदि माटोत, स्थावरं गरलं तस्य न भवेद् विष विक्रिया
॥२४७॥ अश्वगंधा की शिफा (जड़) के कल्क को पीकर स्थावर या जंगम कैसे ही विष पीने वाले पुरुषको विष का विकार नहीं हो सकता है।
क्षीरेण कल्कितां पीत्वा निशां कुष्ट वचामपि, स्थावरं गरलमऽभून्नो वाध्यते विष विकृतैः
॥२४८॥ हल्दी कूठ और यच के दूध में बने हुए कल्क को पीकर स्थावर तथा जंगम कैसा भी विष हो उसका विकार नहीं हो सकेगा।
आरक्तं नान युगं शुष्टाति यस्या ननं भुजः स्फुरतिः,
स्वेद:कंपो हिका विष दानं तस्य मा कुरूत ॥२४९।। ॐअसिपंजराय वंद्य-वंद्य स्वादका स्तद्योर्जिनस्तभकारानरेद्राणांमंत्रंछिदं सुरश्च तयथा तिरिटिंधातय धाता छिंद छिंद स्फोटट स्फोटटा सहश्र खंडं कुरू कुरू पर मंत्रान छिंद छिंद छिन्नो सिर र र ठः ठः ।। जिसके दोनों नेत्र लाल हो गये हों, मुख सूख रहा हो, हाथ फड़क रहा हो, शरीर में खेद और हिचकियाँ आ रहा हो उनको विष नहीं देना चाहिये।
तिरिट रूद्र नामाऽयं मंत्र शत्रु विनाशनः, एतस्य जप होमादि पुरः सिद्धिकरो मतः
॥ २५०॥ यह शत्रुओं को नष्ट करने याला तिरिट रुद्र नाम का मंत्र है। इसको पहले जप और होम से सिद्ध करना चाहिये। ॐ नमो पार्थनाथाय झंवीक्ष्वी हंसं यः पक्षि जःजः ।।
मंत्रेणानेन सिंचेत सलिलैरभि मंत्रितैः, सभ्यानाम परिशात स्यात् प्रतिवरशकता।
॥२५१॥ इस मंत्र को पढ़कर जल छिड़कने से सजनों पर शत्रु का आक्रमण नहीं हो सकता है।
नामामृतांशु मध्य स्थं विधं वजै रिहाष्टाभिः, छिन्नं गरूड मंत्रेण पर विद्या छिदां बिंदु:
॥२५२॥ नाम को चंद्रमा के बीच में लिखकर आठ व्रजों में बींध देवे और गरूड़ मंत्र से घेर दे तो यह दूसरे की विद्या को नष्ट करता है।
ॐ क्षिप स्याहा जः जाजःठाठठः हुं फट । गरूड़ मंत्र