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95015105250505 विधानुशासन 2050550510351015015
पंवार
पृथ्वी महल
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111
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घायू मंडल
श्रीन परन
भाकाशे मरत
जलभूमि वह्नि मारूत गगणैःसं प्लावयोपतैः, भवति च विषापहार स्तर्जन्याशालनाद चिरात्
||५३॥ जल (प) भूमि (क्षि) वलि(ॐ) मारूत (स्वा) गगणै (हा) च पक्षि ॐ स्वाहा सं प्लावय इस मंत्र को बायें हाथ की तर्जनी से चलाने से शीघ्र ही विष दूर हो जाता है। पक्षिॐ क्षि स्वाहा संप्लावय-संप्लावय मंत्र है।
॥ ५४॥
वहि जल भूमि पवन व्योमाग्रं दह पत्वं दयं योज्यं,
स्तोभा युगलं स्तोभो मध्यमिका चालनाद् भवति ॐ पक्षि स्वाहा दह-दह पच-पच स्तोभय-स्तोभय ॥ इस मंत्र का मध्यमा उंगली से अपने से दष्ट पुरुष को कुछ आवेश होता है।
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