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________________ ASTRI5015OISIOSIT5 विधानुशासन PISTOISDISEX510521SS सततं निमिष ट्रैषा मय युतः कंठो महाब्ज कुल जातः, इंदिवर कृत हसत स्व मस्त को मंत्रीभि प्रोक्तः ॥१२॥ महाअब्ज (महापद्म) कुल में उत्पन्न हुए नाग का कंठ निरंतर क्षण-क्षण में बदलने वाली रेखाओं से युक्त होता है और उसका मस्तक कमल के बनाये हुवे हाथ के समान मंत्र शास्त्रियों द्वारा कहा गया है। शंखस्य शंख लांछित मूर्दा पश्यन्मुहमहुवश्य:, कुलिका स्यान्वय जातः कं प्रशिराः सर्वभुजग चेष्टावान ।।१३।। शंख नाग अपने शंख के बिना वाले सिर में बार-बार देखता है। कलिक वंश वाले नाग के सिर हिलता है और वह सब सो से अधिक सावधान चेष्टायाला होता है। सर्पाः फणि भन्मंडलि राजिल भेदां स्त्रियामता, स्तेमी क्रम शो मारूत पितश्लेष्मात्मानो चिनिष्ट ॥१४॥ सर्प फिर भी तीन प्रकार के होते हैं फणि भृत मंडली और राजिल। इनमें फणिभृतवायु प्रधान मंडली पित्त प्रधान और राजिल कफ प्रधान होता है। छत्र स्वस्तिक लांगल चक्रांकुश धारिणः फणवंतः, शीय गतयो भुजंगा एते दीकरा: प्रोक्ताः ॥१५॥ जो नाग छत्र स्वस्तिक लांगल (हल) चक्र और अंकुश को धारण करने वाले बड़े फण वाले और शीघ्र चलने वाले हो यह दर्वीकर अर्थात् फणि भृत सर्प कहे जाते हैं। दीर्घा अशिय गमनाः साये मंडलैश्चिता विविधैःतै, गरूड शास्त्रज्ञैः मंजडिन इति प्रकीत्ययते ॥१६॥ जो नाग बहुत बड़े धीरे-धीरे चलने वाले और अनेक प्रकार के मंडलो से चिते हुए हो उनको गारूड शास्त्र के विद्वानो ने मंडली नाग कहा है। वपुषि तिरश्वीरूद्धा अपि राजी भिन्नाति चित्रा सु. स्निग्धां गाये स्यु स्ते विवुयै राजिला ज्ञेयाः ॥१७॥ जिन नागों के शरीर में टेढ़ी और ऊँची रेखाएँ (लाइन) पड़ी होती हों, जो बहुत अधिक चित्र विचित्र रंगवाले हो और बहुत चिकने होते हैं उनको पंड़ितों ने राजिल कहा है। ಆದಾರ್ಥಗಳಥಳಥ&oe Yಣಬಣಣಸಣಣಠಣ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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