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________________ T5015015015505 विद्यानुशासन RSDISCIEDS015RASI ऊछालने को तर्पण कहते हैं। फिर पूर्व दिशा की तरफ तिराहे पर तीन दिन तक मंत्री पवित्र होकर मंत्र बोलते हुए बलि देये, पशु (भेड़) के दांत, सींग अथवा खुर अथवा चमड़े से धूप देकर पाँचों पत्तों के जल से बालक को स्नान कराये। इसप्रकार बलि विधान करने से कामिनी देवी बालक को छोड़ देती है। फिर पहले के समान ब्रह्मा और अंबिका का पूजन करे और अन्त में वस्त्रों और अलंकारों आदि वस्तुओं से मंत्री का पूजन करे क्योंकि लोक में प्राण देने वाले का बदला नहीं चुकाया जा सकता। ॥१॥ गृहणं देविनी देव्याः सप्तमे वत्सरे शिशोः, वेल्लयित्वात्मनो ग्रीवां निश्चः सेऽत्पीडित स्तया अस्य प्रति क्रयापेवं भेषजादिभि रूच्यते, बल्यर्थ पायसं समिक्षान्यष्ट विधानि च ॥२॥ ताम्र पत्रे स कंक्कोलं निधारी तानि विस्तृती, प्रतिमामऽपि पूर्वोक्ति परिमाणेन कारिता ॥३॥ रक्ताभुक युगो पेतां रक्त माल्यानुलेपनं, सौवीं तत्र गंधामंत्र वेतां समयेत् ॥४॥ अनेन विधिना भक्षरऽष्टभिः पायसेन वा, आहुति जुह्यादाऽग्नावष्टा विशंति संरख्यया मध्यान्हे त्रिपथे द्रुमैरा स्वच्छ श्रुद्धि संयुते, सोद कुंभं बलिं शुद्धो विदधाति समंत्रक ॐ नमः कुष्मांडि कांशिक रक्तमंडिकाऽम्बिके जुहोमि इमं मुंच-मुंच बालक स्वाहा। मंत्रेणा नेन विधि वद्धोमं कुर्वीत मांत्रिकः, निंब पत्राऽहि निर्मोक सिद्धार्थ हरिताल कै ॥७॥ समानशूर्णितै धूप द्दद्याद्वपुषि तत् शिशौः, पंच पल्लव नीरेण स्नपनं ब्रह्मणार्चनं ॥८॥ CTERISEDICTERISRTERS५२८PSCIEDSCIRCISCISCISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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