________________
SSCISSISTORICIS05 विधानुशासन VISIRIDICISIOSDISEKSI
वलेन्द्र वारुण्ये रंड वश्चिकाली महोषधैः
सिद्धा यवागु पीतास्यान्मूढ गर्भ प्रति क्रियां खरेंटी गाडर दूब रंड और विछया धास को सिद्ध करके इनका ययागु पीने से छिपाया हुआ गर्भ भी प्रकट होकर प्रसवं हो जाता है।
॥२२॥
क्षुद्र विदारया कल्कं जग्धं सद्यः सूतिं नार्याः कुर्यात् स्वरसेन इच पुरवायां कृतान्मधु करस्य वा मस्थान्नस्टा वीणां गूढ गर्भ समुद्भवं
॥२३॥ क्षुद्र विदारी कन्द के कल्क को खाने से स्त्री को तुरन्त प्रसव हो जाता है। इक्षु पंखा (सरफोंका) के रस से और मधुकर (अपामार्ग ) के बनाये हुए नस्य को सूंघने से शूट गर्भ का भय तुरन्त दूर हो जाता है।
वासा पत्रांबुना पिष्टावासा मूल त्वगस्थि ना नाभेरधो भवेत स्त्रीणां प्रसूत्री वेदनां बिना
॥२४॥ अरसे के पत्ते के जल से अरडूको उसी जाइ छाल औ. लफटी को पीसकर ली की नाभि के नीचे लगाने से स्त्रियों को बिना कष्ट पाये ही प्रसव हो जाता है।
वारि पिष्ट विशाला मूलभाज्येन संयुतं अधोमुरवमधो नाभिंलिप्तं सद्यः प्रसूतिकृत्
॥२५॥ इंद्रायण की जड़ को पानी में पीसकर इसमें घृत मिलाकर नीघे को मुख किये हुए नाभि के नीचे लेप करने से सरलता से प्रसव हो जाता है।
तुव्यां वा लांगलिक्या च मूलं तोटोन पेषितं अधो नाभेरधो लिप्तं सुरय प्रसव मावहे
॥२६॥ कड़वी तुंबी या लांगलिकी जड़ (कलिहारी की जड़) को पानी से पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से सरलता से प्रसव हो जाता है।
पाठा परूष हलिनी का कान का शिफा पृथक पिष्टा नाभेरऽधो लिप्ता गर्भ नि:क्रमणप्रदा
॥२७॥
CSCRIOTSCIECISCE015 ४३२P/505RISIODIOSCRICE