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________________ SSCI50150551035105 विधानुशासन 98510150151015015015 अति सूक्ष्म तमं रक्तं कु सुमोदक सं निम्भ कटि शूलं भवे तस्था योनि शूलं च संज्वरं ॥७॥ यदि रक्त फूलों के जल के समान अत्यंत सूक्ष्म होता है और स्त्री के कमर का दर्द योनि में शूल और ज्वर तक होने लगता है। मारूत्तस्य विकारोयं ज्ञात्वा कर्म समाचरेत् सहकारस्य मूलं च तथा व्याय पदस्य च ॥८॥ त्रिवृताया भयेन्मूल क्षीरेण लोढयं तं पिवेत् सप्ताहं पंच रात्रं वा यावत् श्रवति शोणितं ॥९॥ तो वायु का विकार समझकर कार्य आरंभ करे उसी समय आम की जड़ कटेली की जड़ और निशोथ की जड़ को दूध में मिलाकर सास या पांच रात तक जब तक रक्त निकलता रहे स्त्री को पिलाये। ततो यौनौ विशुद्धयामिमां दद्यात्महौषधी, लक्ष्मणां क्षीर संयुत्ता तस्यै पानं प्रदापयेत् ॥१०॥ जिटलोनि के शुद्ध होने पर सनी को दूध के साथ तमण औषधि पीने के लिए देवे। तेन सा लभते पुत्रं धाणेन दक्षिणेनत वामनायां भवेत कन्या रूपेणां तीथ शोभना ॥११॥ इस औषधि को दाहिने स्वर में सूंघने और पीने से पुत्र तथा यायें स्वर में सूघने तथा पीने से अत्यंत सुंदर रूप वाली कन्या की प्राप्ति होती है। टास्याश्लेष्म हतं पुष्पं प्राज्ञ स्तमभिलक्षयेत् बहुलं पिच्छिलं चैव नाचिरक्तं भवेद्वधः ॥१२॥ नाभि मंडल भूलेसु शूल भवति दारूणं त्रिकुट त्रिफला चैवं चित्रकं च समभवेत् ॥१३॥ जिस स्त्री का रक्त कफ के विकार से बिगड़ा हुआ हो उसका लक्षण थोड़े थोड़े रक्त का बराबर निकलते रहता है। उस स्त्री के नाभि के नीचे अत्यंत भयंकर दर्द उठता है उसको त्रिकुटा (सोंठ मिरच पीपल) त्रिफला (हरड़े बहेड़ा आमला) और चित्रक को बराबर लेकर। ಆಡ ಚ ಣ {{{Vಥಗಣಗಳಥಳದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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