SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ やったらやらせ APP विद्यानुशासन 9590595959525 आयु : कालमरखंडमेव मनुजा जीवंति तगार्भितः प्रारभ्येव ममु विधिं स विद धन्मातेव रक्षेत्प्रजा ॥५॥ जो मंत्र शास्त्र का पंडित इन कहे हुए मंत्र और यंत्रों में अपने ध्यान को लगाता है। उसका प्रभाव सब जगह प्रसिद्ध हो जाता है। और वह प्रसिद्ध प्रभाव वाला होने के साथ साथ उत्तम रक्षा करने याला भी हो जाता है। बालक को उत्पन्न होते ही भाग्य के कारण पूतना नाम की ग्रही पकड़ती है वह अपनी कार्य करती हुई बालक को बहुत प्रकार से निरंतर कष्ट देती है। इच्छानुसार इन विघ्नों का मूल कारण बुरा भोजन होता है किन्तु जो चंचलता से इनको नहीं सुनते उनके बालक उसके वश में होकर शीघ्र ही अपमृत्यु को प्राप्त होते हैं। किन्तु पुरुष गर्भपात तथा अनेक बीमारियों को करने वाली पूतना ग्रहियों को छोटा न समझकर आये दिन शांति आदि कराता रहता है। तो उसके बालक गर्भ से ही अखंड आयु वाले होकर जीवित रहते हैं। इस विधि को करने वाला पुरुष संतान की माता के समान रक्षा करता है । इत्यार्षे विद्यानुशासने पंचम समुदेशः समाप्तः सामान्य युक्त यंत्र साधन विधान नामक पंचम अध्याय पूर्ण हुआ 959595959 ३८९ 9595295959SPE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy