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959529595951 विधानुशासन 2505959595295
आयं पदं शिरो रक्षेत् परं रक्षेतु मस्तकं तृतीयं रक्षेत्रे हे सूर्य तुका
॥ ६ ॥
पंचमं तुमुखं रक्षेत् षडं रक्षे घंटिकां सप्तम् रक्षेन्नभ्टांतं पादांतं चाष्टमं पुनः ॥७॥ अहंतादि आठ पदों में क्रम से पहला अरहंत पद शिर की रक्षा करो। दूसरा सिद्ध पद मस्तक की रक्षा करो। तीसरा आचार्य पद दोनों नक्षत्रों की रक्षा करो। चौथा उपाध्याय पद नासिका (नाक) की रक्षा करो। पाँचचा सर्व साधु पद मुख की रक्षा करो। छटा सम्यकदर्शन पद गले की रक्षा करो सातवाँ सम्यक ज्ञान पद नाभि की रक्षा करो। और आठयाँ सम्यकचारित्र पद पैरों की रक्षा करो।
पूर्व प्रणवतः सांत सरेको द्वित्रि पंचं षान् सप्ताष्टदश सूर्याकान् श्रितो बिन्दु स्वरान् पृथक्
॥ ८ ॥
पूज्यनामाक्षरावस्तु पंच दर्शन बोधन चारित्रेभ्यो नमो मध्ये ह्रीं सांत समलं कृतः
॥ ९ ॥
पहले तो प्रणव अर्थात् ॐ को लिखें, बाद में सकारांत अर्थात् ह में रकार मिलाकर उसमें दूसरी कला आ मिलावे | अर्थात् ह्रां हुया । फिर हकार और रकार में तीसरी कला ह पांचवी कला उ छट्टी कला ऊसांतवीं कला (स्वर) ए आठयी ऐ दसवीं औ की मात्रा बिन्दु अनुस्वार सहित लगाये और बारहवीं अः की मात्रा लगावे अर्थात् ॐ ह्रां हिं हुं हुं हैं हैं ह्रौं ह्रः इसतरह लिखे । इसके बाद पूज्य पंच परमेष्टियों के आदि के पांच अक्षर लेवे अर्थात असि आउसा लिखे, फिर सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्रेभ्यो लिखकर अंत के नमः पद से पहले शोभायमान ह्रीं को लिखे तब मंत्र मिलकर
ॐ ह्रां हिं हुं हुं हैं हैं ह्रौं ह्र: असि आउसा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रेभ्यों ह्रीं नमः ऐसा २७ अक्षर का मंत्र है। बीज इति ऋषि मंडल स्तयनं यंत्रस्य मूल मंत्र:
आराधकस्य शुभनव बीजक्षरः अष्टादश शुद्धाक्षरः एव मेकतर सप्तविशत्यक्षर रूपं
इस ऊषि मंडल स्तवन यंत्र का मूल मंत्र सत्ताईस अक्षर का है। जिसमें ९ नो बीज अक्षर है और अठारह शुद्ध अक्षर है यह मंत्र आराधना करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण कर देने के कारण शुभ है। इस मंत्र में जो ॐ अक्षर पहले लगता वह गिनती में नहीं आता है। परन्तु उसके लगने से ही मंत्र शक्ति प्रगट होती है।
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