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________________ - - - - SASTRASOISSISIST505 विधानुशासन 9501501501512250ISI ॐ हीं मनोवपु वांग बल इति त्रिप्रकार बल ऋद्धि घर सर्वकृषिभ्यो नमः - ॐ ह्रीं आमर्ष सर्वोषधि आशी विष द्दष्टि विष सरिवल्ल विडजल मलेत्येऽष्टौषधि ऋधिधर सर्वहिस्टो नमः ॐही आशी दृष्टि क्षीर घृत मधु अमृतेति षटप्रकारस ऋद्धिधर सर्वऋषिभ्यो नमः ॐहीं अणिमा महिमा लघिमा गरिमा काम रूपित्य यशित्व ऐश्वर्य प्रकाम्य अन्तरधान निप्राप्त्यतियात इत्ये एकादश यिक्रिया ऋद्धिधर सर्व ऋषिभ्यो नमः ॐहीं केवलमनपर्यय अवधिकोष्टेक बीजसं भिन्न संश्रोत पदानुसारी दूर स्पर्शन दूर श्रवण दूरा स्वेदन दूर धान दूर विलोकन प्रज्ञा श्रवण प्रत्येक बुद्धि दश पूर्वेत्य सर्यपुर्यित्य प्रवादित्याऽष्टाग निमित्थ अष्टादश बुद्रिधर सर्वऋषिभ्यो नमः॥ ॐ ह्रींजंघाचारण श्रेणिचारण फलचारणजलचारणतन्तु चारण पुष्पचारण बीज चारण अंकुर चारण आकाश चारणेति नव प्रकारा क्रिया ऋद्धि घर सर्वऋषिभ्यो नमः ॥ श्री पार्श्वनाथाष्टक गत त्रिोद्धारः क्रियते अब श्री पार्श्वनाथ अष्टक वाले यंत्र का उद्धार किया जाता है। अष्टदल कमलं लिरिवत्वा तन्मध्ये कर्णिकायां ॐनमो भगवते पाश्र्वनाथाय धरणेन्द्र इत्य क्षराणि लिरिवत्वा अष्ट पत्रेषु पलायति सहिताय इत्टी कैकाक्षरं निधाय पत्रांतरालेषु यथा कमंअट्टे मट्टे क्षुद्र वियट्टे इति लिरियत्या तदनुदलाग्रेषु धुदान स्तंभय स्तंभय स्वाहा पश्चात ही कारण त्रिधा संवेष्ट कों कारेण निरोधोत्। एक आठ दल का कमल लिखकर उसकी कर्णिका में ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र यह अक्षर लिखकर, आठ पत्रों में पद्मावति सहिताय इसके एक एक अक्षर लिखकर बाहर अंतराल के क्रम से अहे मद्दे शुद्र विघटे लिखकर बीच के अंतराल में शुद्रास्तंभय शुद्रान्स्तंभय स्याहा लिखे पीछे ह्रीं कार से तीन बार वेष्टित करके क्रों से निरोध करे। SSCI52505OTOS00 ३५१ 151065375851015015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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