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________________ ! 959595959 विद्यामुशासन 951951 っており यदि इसी यंत्र को पृथ्वीमंडल में पीले रंग का पहले किसी के हृदय में ध्यान करके फिर उसके शरीर भर में व्याप्त ध्यान किया जाये तो उसमें क्रोधादि का स्तंभन होता है। (धर्म और अर्थ पर जल मंडल कहा है । उसी में इसको धूम्रवर्ण वायुमंडल का ध्यान करने से उच्चाटन और द्वेष होता है। नीले वर्ण का ध्यान करने से मोहन भी होता है। ( वशीकरण में अग्निमंडल कहा है) काले वर्ण का दोनों असमर्थ चिंतावालों के हृदय तथा शरीर में व्याप्त चिंतवन करने से आपस में विद्वेषण होता है। और श्वेतवर्ण ध्यान से विष नष्ट होता है। अथ गणधर वलय मंत्र प्रभाव उच्यते अब गणधर वलय मंत्र के प्रभाव का वर्णन किया जाता है शुक्ल चतुर्द्दश्यां पंचम्यामष्टम्यां वा गुर्वादि प्रामाणिको भव्यः उपोष्य श्रुचि भूया शर्व सर्व भूवनं परिसमाप्य पश्चात परमेष्टिनं गणधर वलय चक्रं च गंधादिभिरभ्यर्च्य पश्चात् चंदन कुष्ट क्षोदेन मंत्री स्व दक्षिणा कर्ण मालिप्य जीवित मरण लाभालाभादिषु मध्ये विवक्षितं किमपि कार्य संप्रधार्य तदानीमेव ॐ णमो जिणणं प्रभृति यावदागास गामीणं तावत् प्रमाणेन झौं झौं स्वाहा || तन मंत्रेण तद्दक्षिण हस्तेन स्पृशन अष्टोत्तर शत भि मंत्रयेत ततो विविक्त स्थानै वाम पार्श्वे सुप्तेन यत्किंचि त्स्वप्रे दश्यते तदऽवितथं भवति जप काले वा यद्वचन मद्दष्ट प्रणे कं श्रूयते तत्सर्वं सत्यमेव शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पंचमी या अष्टमी को गुरू आदि की पूजन में तत्पर भव्य पुरूष उपवास करके स्नानादि से पवित्र होकर रात्रि में ही सर्वज्ञ भगवान की पूजन को समाप्त करके इसके पश्चात परमेष्टि गणधर वलय चक्र की चंदनादि से पूजन करें। इसके पश्चात चंदन कूठ के चूर्ण से मंत्री अपने दाहिने कान को लीपकर जीवन-मरण लाभ और अलाभ में से जानने योग्य किसी कार्य का निश्चय करके उसी समय "ॐ णमो जिणाणं से लगाकर ॐ णमो आगास गामीणं" तक तथा झ झ स्वाहा मंत्र से दाहिने कान को हाथ से छूता हुआ एक सौ आठ बार अभिमंत्रित करे, फिर एकांत स्थान में बाईं करवट से सोकर स्वप्न में जो कुछ भी देखता है वह सत्य होता है अथवा जप काल में जो शब्द बिना बोलने वाले को देखे हुए सुनाई दे । वह सब सत्य होता है। 969595959SP २९६ PSP59595959525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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