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________________ CASIRISRADIOTSTOTRICT विधानुशासन PASTOTRICISTOTRASES इति पर विद्या छेदन मंत्रोद्धारः एते पिंडा समाःक्ष ह भ म यर झोन युक्ताः, प्रकर्तुमत्यांना सर्वदाहज्वर भर हरणं सर्व पीडाविनाशं यंत्र श्री खंडालिप्तेलिरवत सु विशदें कांस्य पात्रे त्रिमुष्टि प्रोन्नत्पाद राष्ट्रा विविध गुणवतो मंत्रवादी समर्थः॥ अर्थः- उस पर विद्या छेदन मंत्र में उन पिंडों के स्थान म ह भ म य र घ और झ पिंडो को लिमकर यंत्र बनाने से मनुष्यों के सबप्रकार के दाह ज्वरों का बोझ हलका होकर सब पीडायें नष्ट हो ना तो इस यंत्र को चंदन से तीन मुट्टी मुंचे काँसी के बर्तन में डालकर लकड़ी से अनेक प्रकार के गुणों से मंत्री को लिखना चाहिये। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं च बीजं तदुपरि कलिकुंडेति दंडाधिपं च दा हो पेतोग्रौत्य ज्वर तर हरणं सर्व पीडा दिनांश कुर्यादात्मान्य विद्यानिवहमनुदिनं रक्ष छिंद द्वयंति । ॐ ऐं ह्रीं श्री बीज (है) कलि कुंड दंड स्वामिनः अर्थः- अतुल बल वीर्य पराक्रम के पश्चात् पंडित का नाम लिखाकर दाह ज्याराद्य उपशांति कुरू कुरू लगावे फिर आत्म विद्यां रक्ष रक्ष परविद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद लिखकर श्री ह्रीं ऐं द्वेष बीजं तदुपरि विलिरव्योच्चाट बीज च होमं (हुं द्वेष बीजं उच्चाट बीजं फट् बीजं स्वाहा होम) श्री हीं ऐं उच्चाटन यीज हुं फट् और होम (स्याहा) लगाये इस मंत्र को यंत्र में लगाकर जप करने से अत्यंत तीव्र ज्वर से पीड़ित पुरुष को भी सब पीड़ा दूर हो जाती है। अस्य मंत्रोद्धारः ॐ ऐं ह्रीं श्रीं है कलिकुंड दंड स्वामिन्नतुल बल वीर्य पराक्रम देवदत्तस्य दाह ज्यराद्युपशांतिं कुरू कुरू आत्म विद्यां रक्ष रक्ष पर विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद श्रीं ह्रीं ऐं हुं फट् स्वाहा। इति ज्वरोपशमन यंत्रोद्धारः SASTRITICISRASOID00505 २६६PXSTOESIRISTIO150SOTECISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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