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________________ SSIO15015101501505 दिघानुशासन ASICISCISIOTSICIDESI नित्यादि मंत्रेण सुजाप यस्यै ददातियो गंध फलं प्रसूनं सा तस्या वश्या भवतीह पने सौभाग्य यल्ली प्रसवं विचित्रं ॥ २४ ॥ उपरोक्त मंत्र से गंध फल पुष्प आदि जिस किसी को देता है यह उसके वश में हो जाते हैं। हे पने इस सौभाग्य लता की उत्पत्ति बड़े विचित्र ढंग की होती है। शीषांस्य हन्नभि पदेषु यस्यान्यसेदनं गोद्भव पंच बाणान संमोहनं द्रावण मेति वस्य पद्मावती त्वंयदि तोषमेति ॥ २५ ॥ हे पद्मावती ! यदि कोई पुरुष आप में संतोष करके किसी स्त्री के सिर मुख नाभि और पैरों में काम के पांचो बाण लगावे तो उसका संमोहन और द्रावण होता है। यः काम राजस्य तलोद्रभागे मायातरं पार्श्व युगे। तथा ब्लेंगौनौभ्रमंतं पदद्योः पतंति ध्यायन सदा भावयतीह पछ॥२६॥ हे पद्मे ! जो पुरुष स्त्री की योनि के ऊपर और नीचे के भाग में माया अक्षर (ही) और दोनों पार्श्व में ब्लें का ध्यान करके उसको घूमती है और पैरों में पड़ती हुई ध्यान करता है यह सदा ही उस स्त्री की भावना करता अर्थात् प्राप्त करता है। नेत्रादि मध्ये परियोजनाया ब्लें कामराज हिविलोकांति प्यायेत् स सिंदूर समान वर्ण क्षिप्तं च्युतिं कारयती ह प ॥२७॥ हे पद्मे ! जो मंत्री स्त्री के नेत्री की आदि मध्य और अंत में क्रमशः क्रमशः ब्लें कामरज क्लीं और द्विपलोक (क्रो) का सिंदूर के समान लालवर्ण युक्त ध्यान करता है।वह शीघ्र ही स्त्री को द्रवित करता पद्मावती स्तोत्र मिदं त्रिसंध्यं सन्मंत्रि मुरवै गदितं पठयः स सिद्ध वाक् सर्वजनानुरागी सर्वार्थ कामांच सदालभते ॥२८॥ जो पुरुष पद्मावती के स्तोत्र को प्रातः दोपहर और सायंकाल के समय उत्तम मंत्रो के सहित पढ़ता है उसकी वाणी सिद्ध हो जाती है। सब पुरुष उससे प्रेम करते हैं। उसका सब अर्थ और काम प्राप्त होते हैं। SSIO1510505DDRISTOTE १९९151050SOTSARI5015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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