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________________ SSSSCISIOISSISTA5 विधानुशासन BASICSDISTRISTOTRICKS काठ की छोटी लकड़ी में भ्रमार (भमछल्ली लता) को भर देने से वह आकाश में संसार को आश्चर्य में डालती हुई बिना आलम्बन (सहारे) के साकाली है। वजाहत तरोः शंकु स्तिष्टेत व्याम्नि जिरापहं, कृताऽनुलेपनःशून्या सव्योषेण जरायुना । ॥१०८॥ वज्र से नष्ट हुए वृदा की कील पर शून्या (नली द्रव्य) व्योष (सोंठ मिर्च पीपल) और जरायु (गर्भ की झिल्ली) का लेप करने से वह आकाश में बिना सहारे के ही ठहरती है मध्टोंबर निराधारं धारयेत सरसिरुह अंगुली मुद्रिकां धृत्वा सारमेयजरायुनां |१०९॥ सारमेंय (कुत्ते) की जरायु (गर्भ की भिल्ली) की उंगुली में अंगूठी धारण करके अंबर (आकाश) में निराधार बिना सहारे ही सरसी रुह को लटका सकता है मह्यां सुस्थापिते वारा शराबे परि पूरिते शमनकैः स्थापितो नैव निपतेन मुशलश्चिरं ॥११०॥ महि (पृथ्वी) में शमनक () से भरे हुए शराबों को रखने से ही मूसल बहुत देर तक नहीं गिरते निजोदर समा शक्त प्रज्वल ज्वलनो घटः सं शक्त वदनः कुक्षौ नसस्य नपते (वि ॥१११ ॥ अग्नि में प्रज्वलित घड़े के पेट में अग्नि से युक्त होने के कारण घड़ा पृथ्वी में नहीं गिरती है। पूर्णं घाटेऽद्भिः प्रस्थे वा गुवाव्य क्षिपेत्, शिला उद्धत्ते गोमया लिप्त संधी उपरि संस्थिते ॥११२॥ भरे हुए घड़े या पृथ्वी में जल के द्वारा बहुत सी मेनसिल (शिला) फेंककर उसको उठाकर गोमय (गोवर) से लिपि हुई संधि के ऊपर रखकर | शराबः पूरितो वारिभि न्नदलेन सुस्थितः क्षिती उपरिया रोषिता विभ्र दुर्वीम विषमा शिलाः फिर उसके ऊपर भारी मेनसिल को धारण करते हुए शराबे को रखकर । ॥११३।। SSIPTSDISTRISEASE525१०९७/50RRISTRIESIRIDIOTSTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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