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________________ 596 चूर्णेन इक्षुर बीजानां चक्रांक्या स्वसेन वा, संमिश्रितं क्षणदेव सलिलं पिड़ितो व्रजेत 15 विद्यानुशासन SPE वश्या ॥ ९१ ॥ ( ईक्षुर) ताल मखाने के बीजों का चूर्ण अथवा (चक्रांकीट) कुकी के रस में मिला हुआ जल उसी क्षण जम जाता है tats संutrद 8% ही fie 4:2.40th V50505 हस्त्का सर्धाविव सितं पुष्यं ता पिच्छस्यांजन द्युति, स्पष्टां धूमेन जायते जपा पुष्प समप्रभं ॥ ९२ ॥ अंजन के समान कांति वाले तुरंत का निकला हुआ (तापिच्छ) तमाल का फूल धुंए के लगने से ( जपापुष्प) गुड़हल के फूल के समान लाल हो जाता है। रक्तस्य करवीरस्य पुष्पं गंधक धूपितं, श्वेतं स्यात् चूर्ण पृष्टंतुभजेत श्यामतामऽपि ॥ ९३ ॥ लाल कनेर का फूल गंधक के चूर्ण से घिसा जाने से काला हो जाता है। तथा धूप देने से श्वेत हो जाता है। 95959595959१०९४P/5959595959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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