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________________ DEDISTRISTD353557275 विद्यानुशासन 5050525E5IRST पिश्रुनयति नाम चौरं क्षीर तरू क्षीर विलिरिवतं पाणि तले परिमईनेन मलिनं साशंकित नाम दग्ध भूर्जमयः ॥ १२॥ संदिग्ध (संदेहवाले) नाम को भोजपत्र पर लिखकर हाथ पर रखकर क्षीर वृक्ष (आक ) के दूध से लिस्ने यदि वह गाणी हाथो से मलने पर मैला हो जाये तो चोर निश्चचय से छूटा है। आलिरव्य वैपरित्येन मला भूर्जदले तनौ, वाचोन्नाम चोरस्थ निगूठमपिष्टतः ॥१३॥ नये भोज पत्र पर उल्टा लिखा हुआ चोर का नाम (निगूठ) छुपा होने पर भी जल में अथवा दर्पण में पढ़ा जा सकता है। लिरिवतं नाम चोरस्य भूर्जकेवैपरित्यातः, संक्रांति प्रीति में तोटो वाचोन्मु करे: थवा ॥१४॥ भोजपत्र पर उल्टा लिया हुआ चोर का नाम संक्राति समान तोय (जल) में अथवा मुकर (दर्पण)में पढ़ा जा सकता है। दुग्ध नाशक योग स बिन्धु वीप्सिता वृदिध जायांता पंचमी कला सिधै लक्ष जपात एष मंत्रोरुयाधिदेवतः । ॥१५॥ बिन्दु सहित ढवी (पृथ्वी अक्षर) ईप्सत (इच्छित) वन्हि जायांता (स्याहा) पांचवी कला (३) सहित यह रुद्र देवता का मंत्र एक लाख जाप से सिद्ध होता है। रोहिण्यां निरवान गोष्ट स्थाने गोरस्थि मंत्रितं। मंत्रेण अनेन तत्रस्यादवां क्षीरपरिक्षयः ॥१६॥ यदि गाय की हड्डी को इस मंत्र से मंत्रित करके रोहिणी नक्षत्र में गायों के स्थान में गाड़ दी जाये तो गायों का दूध सूख जाता है। मंत्रश्च भावेयति स्वाहांतो वह्नि देवतः। पुरश्चरणमेतस्य जपो लक्षं प्रकीर्तितं ॥१७॥ भावय स्वाहा यह अग्नि देवता का मंत्र एक लाख जप के पुरश्चरण करने से सिद्ध होता है। निरषन द्वादरं किलं स्वाती मंत्रेण मंत्रित, अनेन चक्रिणे हे भवेत् तैलपरिक्षय: ॥१८॥ CSCISSISTRISPRSIOTSIDE१०८१ P5215IDASIRSIDASTDISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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