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STRIS5I0505015 विद्यानुशासन READISSISTRIDICISION
ॐ नमः श्री पार्श्वनाथाय: नमः |
अतः परं प्रवक्ष्यामि विधानं नार्म कर्मणः, यत्प्रयोगस्य लोकस्य विस्मयो जायते महान्ः
॥१॥ अब नर्मन (हंसी खेल) के कर्म के उस विधान का वर्णन किया जावेगा जिसका प्रयोग करने से लोगों को बड़ा आश्चर्य होता है।
आदौ बलि शब्द युगं महाबली त्यनु ततोरिन जायाते त्रि सहस्त्र जपात् सिद्भेत मंत्रोयं क्षेत्रपालस्ट
॥२॥ ॐ बलि चलि महाबलि महाबलि स्वाहा आदि में दो बार बली फिर महाबली और अंत में अनि जाया (स्वाहा) रूप क्षेत्रपाल का मंत्र तीन हजार बार जप से सिद्ध होता है।
मत्तस्य सारमेटास्यां ख्यानात्कृत जपं गहादीनां,,
द्वार्देश संवेशित मा शुभवेत ताल विवरण कृत ॥३॥ इस मंत्र को पागल कुत्ते के नाम से जपकर के घर आदि के द्वार में संवेश (सोने) से शीघ्र ही (ताल) विविरणकिसी के आने पर शब्द होता है।
भ्रमि युगलं केशि भूमि माते भ्रमिवि भमं
चमुह्य पदं मोहय पूर्व स्वाहा मंत्र्यो प्रणवपूर्व गतः ॥४॥ ॐ भ्रमि भ्रमि केशि भ्रमि माते भ्रमि विभ्रमं मुहह्य मोहय स्वाहा दो बार भमि केशि भमि माते विभम मोहय मोहय स्वाहा। दो बार धमि केशि भ्रमिममाते विभमं मुहय पद मोहय और स्वाहा यदि आदि में प्रणव ॐ युक्त मंत्र है।
एतेने लक्षमेकं भूमिमऽसं प्राप्तं सर्ष पै जप्त्वा
क्षिप्ते ग्रह दहल्या मऽकाल निंद्रा जनः कुरुते इस मंत्र को पृथ्वी पर नहीं गिरी हुई सरसों से एक लाख जप करके, उस सरकों को घर की दहली में डाल देने से घर के आदमी बेखबर सोते रहते हैं।
ॐ शुद्धे श्रुद्ध रूपे योगिनी महा निद्रे ठाठः JERSEWಡRoss5/