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________________ PSPSPSPSS विद्यानुशासन खदिराग्निना हिम कुकुमादिभिरादरादनवत्य बलां चलात् दिन मद विवा सप्तके ॐ नमो भगवत चंड काव्यनि सुभगे युवति जनानामाकर्षय आक्रों ह्रीं ह्युं फट् देवदत्ताया हृदयं घे देव के पति लिखकर उसके बाहर आग्नि मंडल बनाये फिर उसको रेकार और मंत्र से वेष्टित करे। इस मंत्र को श्मसान के खर्पर पर कपूर केशर आदि सुगंधित द्रव्यों से लिखकर यदि खादिर (रेवर) की आग पर तपाये तो वह सात दिन के भीतर बहुत आदर से मद से विह्वल होकर स्त्री खींची आती है। फट देवदत्ताया हृदय मे क्रीही ह ₹ I 5 [y J ₹ bakikit I ॐ र रंई र S H 2 せ रं रं रं रं रं र ॐ नमो · 555 I दुभंग 1 भगवति चंड शुभगे एनएनएन कात्यायनि 1134 11 भानुपत्रे कृता साध्य रूपा कृति वह्नि बीज द्वयेनावृतं, संपुटं वाम दिग दक्षिणे कूटजं सुंदरं पंचभिः कोण देश स्थिरं सुंदरं कामराजेन गात्रे हृदि ग्रंथित मंधि युग्म स्थितं मारुतं चोचते सन्ति तं वोरू हृत कंठे देश स्थितं वारि बीजं सरे जीव रक्षा कर: खदिरांगार तप्तं कृतं भूतले वश्य माकर्षण भाषितं बुधजनैः ॥ ३६ ॥ एक भानु (आक के पत्ते) पर साध्य का सुंदर रूप बनावे उसके बाईं तरफ दो अग्नि बीज (रं ₹) और दाहिनी तरफ सुंदर पांच कूठाक्षर (क्षां क्षीं क्षं क्षौ दक्षः) कौने में बनावे उसके हृदय और शरीर के जोड़ों में काम राज (क्लीं) लिखकर दोनों पैरों में वायु बीज यं लिखे उसकी जांघो हृदय और e5e5950 P50/5032004 PI5052525252525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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