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________________ 959595955 विद्यानुशासन 95959595959 अनुक्तमपि सर्वेषां यंत्राणां क्षितिमंडलं बाह्यदेशे विलेख्यं स्यान्नरेन्द्रयंत्र कोविदै : यंत्र शास्त्र के पंडित बिना कहे भी यह सब यंत्रों के बाहर पृथ्वी मंडल बनावे | एषां भूमंडलादीनाविद्या प्रायः प्रयोगवित् स्थभेन च तथा शांतौरामाकृष्टौ प्रचालने ॥ ३८ ॥ ॥ ३९ ॥ स्तंभन कर्म में पृथ्वी मंडल शांति पौष्टिक और वश्य कर्म में जल मंडल स्त्री आकर्षण में अग्नि मंडल तथा मारण विद्वेषण और उच्चाटन में वायु मंडल बनावे यह इन मंडलों का प्रयोग है। चतुर्भिमंडलै कुर्यात्ः पृथ्वी तोयाग्निमारुतैः वेडस्य स्तंभन नाशस्तोभ संक्रमणानि च ॥ ४० ॥ किसी के स्तंभन मारण स्तोभ और सक्रमण रूप मिश्र कर्म में उपरोक्त चारों ही मंडलों का प्रयोग करे अब दूसरे प्रकार से छहों कर्मों का कथन किया जाता है। प्रकारांतरेणापि षट्कर्म कथनं स्त्री पुं नपुसंकत्वेन त्रिधा स्टुमंत्र जातय: श्री स्त्री मंत्रा वह्निजायांता (स्वाहांता) नमोतांश्च नपुंसका ॥ १ ॥ मंत्र के फिर भी तीन भेद होते हैं स्त्री पुरुष नपुंसक इनमें से श्री तथा स्वाहा अंत वाले मंत्र स्त्री और नमः अंत वाले नपुंसक होते हैं। शस्तावश्येषू च्चाटनेषु च क्षुद्र क्रियामयध्वंसे स्त्रियोन्यत्र नपुसंकाः शेषाः पुमांस स्ते ॥ २ ॥ और शेष मंत्र पुरूष मंत्र होते हैं। वश्य कर्म उद्घाटन कर्म तथा क्षुद्र कर्म और पाप नष्ट करने में स्त्री मंत्रो का और शेष कर्मों में पुरूष मंत्रो का प्रयोग करे। (स्वाहांता उकारस्तार अंत, अग्निः रं ह ह प्रायो बाहुल्येन यस्मिन्) तारांताग्नि वियत् प्रायोमंत्र आग्नेय इष्यते इष्टौ शोम्य प्रशस्ती तौ कर्मणः क्रूर सौम्ययोः 113 11 अंत के ऊंचे बीज अग्नि बीज और वियत आकाश बीज वाला मंत्र आग्नेय कहलाता है। इसका प्रयोग क्रूर कर्म में करना चाहिये और सौम्य मंत्र का प्रयोग प्रशस्त कर्म में करने योग्य है । आग्नेय मंत्र सौम्यः स्यात् प्रापसोन्तेन नमोत्वितः, सौम्य मंत्र स्तु विज्ञेयः फट् कारेणान्वितोंततः 95959SP595969 १०२ P/5959595969595 ॥ ४ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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