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________________ - - OSDISTO51015015105 विधानुशासन 9851015015015015050 कृष्णश्चनकस्य जंया शल्टो प्रविलिरव्य चूर्ण रक्तेन।। रखदिरागारे तप्तं सप्ताहादानयत्यं बलां ॥३१॥ अथवा रजस्वलायाः वस्त्रे संलिख्यं जलज नागन्याः पुच्छं विधाय वर्ति तहापाजानयत्य बला ॥३२॥ ॐको ही क्ली र रः अमुकी माकर्षय आकर्षय घे घे मम वश्या कृष्टिं कूरू कुरू संवोषट् ॥ - - - - - - ॐ को ही कृ आ क्रौनाम ष्टि की ओ म ॐ को ही म अ.अओं आ AM ॐ को ही क्ली को ट् ह्रीं कार मध्ये प्रविलिख्य नाम षटकोण चक्रम, वहिरात्ति लेस्टयं कोणेषु तत्वं त्रिषु चोळू कोण द्वये पुनः टू मघरे लिखे च्च । पाशा कुंशो कोण शिरवां तरस्ती मंत्रोवृती वायु पुरंच वाद्ये । आकृष्टिमिष्ट प्रमदाजनानां करोतियंत्र रवदिरानि तप्तं ॥३३ ।। ॐ ह्रीं हस्क्लीं हंसो आंकों नित्ये क्लिन्ने मद दवे मदनातुरे अमुकीमाकर्षय मम वश्या कृष्टिं कुरू कुरू संवौषट् । WEDNESEo93595999
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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