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CHOTECTRICISSISTS विद्यानुशाम RACCIRCTERTAICISCESS
इसमें
(१) मंत्री के लक्षण
(२) मंत्रो के लक्षण विधि (३) सर्व परिभाषाओं के लक्षण (४) सामान्य मंत्र साधन (५) सामान्य मुक्ति यंत्र साधन विधान (६) गोंत्पित्ति विधान (७) बालचिकित्सा
(८) ग्रहाधिकार (९) विष हरण
(१०) सर्प तंत्र (११) मंडल आदि की चिकित्सा (१२) दोषज रोग शांति (१३) कृतरूग्वधो
(१४) कृत्रमरोग शांति (१५) मारण
(१६) मारण प्रतिकार (१७) उच्चाटनं
(१८) विद्वेषण (१९) स्तंभन
(२०) शांति (२१) पुष्टि
(२२) वशिकरण (२३) स्त्री आकर्षण
(२४) नर्मधिकार क्रम से इस शास्त्र में २४ अधिकारकहे गये हैं। और इस ग्रन्थ की श्लोक संख्या ५०००
।। मंत्र साधक के लक्षण॥ अथातः संप्रवक्ष्यामि मंत्रि लक्षणमुत्तमं। यो मंत्रादि विधौ प्रोक्तः सजातीय स्त्रिवर्णभूत
॥१॥ अब मंत्री के लक्षण जो मंत्रादि के विधि में कहे गये हैं अब कह रहे हैं। मंत्री अच्छी जाति वाला और तीन वर्णो को धारण करने वाला हो।
रत्नत्रय धनः शूरः कुशलो धार्मिकः प्रभुः। प्रबुद्धारिवल शास्त्रार्थः परार्थ निरतः कती
॥२॥ वह सम्यकदर्शन-सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीन रत्नत्रयी रूपी धनवाला, शूरवीर, धार्मिक, प्रभु, सब शास्त्रों के अर्थ को जानने वालों दूसरों का उपकार करने वाला और कृतज्ञ हो।
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