SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तु चिन्तामणि हे पाप राक्षसी देव इदमर्घ्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतम्, पुष्पं, दीपं, धूपं, चरु, बलि, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं च यजामहे - यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा । शांतिधारा, (पुष्पांजलि क्षिपेत् ) अर्घ्य के साथ उबाले हुए मूँग चढ़ाएँ । (49) चरकी देव पूजा चरकी देव परिवार सहित, पूजूँ मन हर्षाय । रोग शोक सब ही टले, मन में शांति पाय । । 49 ।। 275 ॐ आं क्रौं ह्रीं शंखवर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपरिवार हे चरकी देव अत्र आगच्छ आगच्छ, स्वस्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा । हे चरकी देव इदमर्घ्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतम्, पुष्प, दीप, धूपं, चरुं, बलि, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं च यजामहे - यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा । शांतिधारा, (पुष्पांजलि क्षिपेत् ) अर्घ्य के साथ घी और गुड़ चढ़ाएँ । ( 50 ) पूर्णार्ध्य सब ही वास्तु देव को, सब परिवार सहित । अष्ट द्रव्य से पूजूहूँ मैं परिवार सहित ।। सब प्रकार के भक्ष्य को अर्पण करता आज । शांति से तुम ग्रहण करो, मिटे सकल संताप । । हे वास्तु देव सपरिवार सहितेभ्यो इदमर्घ्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतम्, पुष्पं, दीप, धूपं, चरुं, बलि, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं च यजामहे यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा । - शांतिधारा (पुष्पांजलि क्षिपेत् ) इस वास्तु विधान में जो जो आए देव | वे सब मिलकर शांति करें सकल उपद्रव शोक ।। यह श्लोक पढ़कर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें, पुष्पांजलि अर्पण करें। घर अथवा मन्दिर में अष्टकोण कलश स्थापना । आठ दिशा में आठ कलश, जल के करे परिपूर्ण । पूजा कर स्थापन करें, विघ्न होत सब दूर ||
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy