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वास्तु चिन्तामणि
शयन करने के पूर्व हाथ पांव मुंह धोकर णमोकार मंत्र का जप करके शुभ विचार करते हुए शयन करना चाहिए ।
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घर में दरवाजे पर, खाली जमीन पर गूंजन की जगह पकड़ीं करना चाहिए |
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शयन करने की दिशा के विषय में एक लोकोक्ति के अनुसार स्वगृह पूर्व की तरफ, श्वसुरगृह में दक्षिण की तरफ तथा तीर्थयात्रा एवं मार्ग में पश्चिम की तरफ सिर करके सोना उत्तम है।
शयन कक्ष के लिए संकेत
यदि मकान के ऊपर एक और मंजिल हो तो नीचे के शयन कक्ष को छोड़कर ऊपर की मंजिल में उसी दिशा में शयन कक्ष करना चाहिए। उसमें स्वयं गृहस्वामी को या उसके ज्येष्ठ पुत्र को शयन करना चाहिए। यदि शयन न करना हो तो पलंग लगाकर स्थान रिक्त रखना चाहिए। अन्यत्र सुलाने से विकल्प एवं कलह में वृद्धि होगी ।
मकान में कम स्थान होने पर अन्य कमरों में भी दक्षिण व नैऋत्य दिशा में बिस्तर लगाए जा सकते हैं।
शयन कक्ष की दीवालों का रंग हरा, नीला आदि होना चाहिए। वहां बिछाए गए चादर आदि भी इसी प्रकार के रंगों के होना चाहिए। लाल रंग बेचैनी को बढ़ता है। अतः लाल जैसे तेज रंगों का प्रयोग शयनकक्ष में नहीं करना चाहिए। ऐसे चित्र भी शयन कक्ष में न लगाएं जो भयावह, विकराल, वीभत्स अथवा घृणास्पद हों । मनो विभ्रम करने वाले चित्र भी न लगाएं। चित्र मनोहारी एवं सुरुचिपूर्ण हों। शयन कक्ष की आंतरिक सजावट कलापूर्ण हो। शयन कक्ष में शय्या कोमल होना चाहिए ।
शयन कक्ष में खिड़कियां अवश्य बनवाएं ताकि वातावरण में ताजगी रहे तथा घुटन महसूस न हो ।