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________________ 80] कालान्तर में पुरन्दर ने अपनी पृथ्वी नामक रानी के गर्भ से उत्पन्न पुत्र कीर्तिधर को सिंहासन देकर क्षेमङ्कर नामक मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली। (श्लोक ३०) कीर्तिधर राजा होकर इन्द्र जैसे पौलोमी के साथ विषयसुख का भोग करते हैं उसी प्रकार अपनी रानी सहदेवी के साथ विषयसुख का भोग करने लगे। एक दिन उनके मन में भी दीक्षा लेने की बात आई तब मन्त्रीगण उससे बोले, 'जब तक आपके पुत्र न हो आप दीक्षा न लें। यदि आप पुत्रहीन अवस्था में दीक्षा लेंगे तो पृथ्वी अनाथ हो जाएगी। हे राजन्, आप पुत्र जन्म होने तक प्रतीक्षा करें।' (श्लोक ३१-३३) मन्त्रियों द्वारा इस प्रकार रोके जाने पर कीर्तिधर दीक्षा न ले गृहस्थावास में ही रहने लगे। कुछ समय पश्चात् रानी सहदेवी ने सुकोशल नामक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्म का संवाद सुनते ही पति दीक्षा ग्रहण कर लेंगे। इसलिए रानी ने बालक को छिपा लिया। बालक को छिपा लेने पर भी राजा को पूत्र जन्म ज्ञात हो गया। भला उदित सूर्य को कौन छिपा सकता है ? तब स्वकल्याण में कुशल कीतिधर ने अपने पुत्र सुकोशल को सिंहासन पर बैठाकर विजयसेन मूनि से दीक्षा ले ली। तीव्र तपस्या और अनेक परिषहों को सहन कर राजर्षि गुरु आज्ञा प्राप्त कर एकाकी विचरण करने लगे। (श्लोक ३४-३८) एक बार कीर्तिधर मुनि मासक्षमण तप के पारने के लिए अयोध्या आए । मध्याह्न के समय वे भिक्षा के लिए नगर में विचरण करने लगे। प्रासाद शिखर से उन्हें देखकर रानी सहदेवी सोचने लगी-पहले जब इन्होंने दीक्षा ग्रहण की मैं पतिविहीना हो गई। अब यदि उन्हें देखकर सुकोशल दीक्षा ले लेगा तो मैं पुत्र विहीन हो जाऊँगी और पृथ्वी स्वामी-विहीना । अतः राज्य मङ्गल के लिए मेरे पति को व्रतधारी और निरपराध होने पर भी नगर से बहिष्कृत कर देना उचित है। ऐसा सोचकर सहदेवी ने अन्य वेषधारियों के साथ उन्हें भी नगर से निकला दिया। जिसका हृदय लोभ के वशीभूत हो जाता है उसमें विवेक नहीं रहता। (श्लोक ३९-४३) सुकोशल की धाय माँ को जब पता चला कि सहदेवी ने
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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