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समाविष्ट है । इसके सम्पादन में यह विशेष रूप से ध्यान रखा गया है कि अनुवाद कौनसे पद्य से कौनसे पद्य तक का है, यह संकेत प्रत्येक गद्यांश के अन्त में दिया गया है । हम श्री गणेश ललवानी और श्रीमती राजकुमारी बेगानी के अत्यन्त आभारी हैं कि इन्होंने इसके प्रकाशन का श्रेय प्राकृत भारती को प्रदान किया ।
सूचित करते हुए हमें हार्दिक खेद है कि इस भाग के प्रकाशन से पूर्व ही श्री गणेश ललवानीजी हमारे बीच नहीं रहे । पारसमल भंसाली देवेन्द्रराज मेहता सचिव
अध्यक्ष
श्री जैन श्वे. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ प्राकृत भारती अकादमी
मेवानगर
जयपुर
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