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________________ [253 इत्यादि कहते हए उच्च स्वर में रोने लगे। कौशल्यादि माताएँ और पुत्रवधुएँ भी करुण स्वर में क्रन्दन करने लगी और बार-बार मूच्छित होने लगी। नगर की सभी दुकानों पर प्रत्येक घर, प्रत्येक पथ पर समस्त रसहर्ता अद्वैत शोक का साम्राज्य व्याप्त हो गया। (श्लोक १३०-१३४) उसी समय लवण और अंकुश राम के निकट आए और उन्हें नमस्कार कर बोले, 'हम अपने इन लघु पिता की मृत्यु से संसार से अति भयभीत हो गए हैं। मृत्यु सभी को अकस्मात् आकर ही उठा लेती है, अतः हम लोगों को पहले से ही परलोक के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। अतः हे पिताजी, आप हम लोगों को दीक्षा ग्रहण का आदेश दीजिए। लघुपिता बिना हमारा घर पर रहना सर्वथा अनुचित है।' तदुपरान्त राम को प्रणाम कर लवण और अंकुश ने अमृत घोष मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली और तपस्या कर मोक्ष गए । (श्लोक १३५-१३८) भाई की मत्य और पूत्रों के वियोग में राम बार-बार मूच्छित होने लगे और मोह से शोकाकुल होकर कहने लगे'हे भाई, अभी तक मैंने तुम्हारा कभी अपमान नहीं किया है। फिर तुम क्यों मौन हो गए ? हे भाई, तुम्हारे मौनावलम्बी होने के कारण मेरे पुत्र भी मेरा परित्याग कर चले । छिद्र पाकर मनुष्य देह में हजारों भूत प्रवेश कर जाते हैं।' (श्लोक १३९-१४१) ___ इस प्रकार उन्मादी की तरह उन्हें बोलते देखकर विभीषणादि एकत्र होकर उनके निकट गए और गद्गद् कण्ठ से कहने लगे- 'आप जिस प्रकार वीरों में वीर हैं उसी प्रकार धीरों में धीर हैं, अतः लज्जाजनक अधैर्य का त्याग कीजिए। अब तो लोक प्रसिद्ध और समयोचित लक्ष्मण का ऊर्ध्वदैहिक कृत्य अङ्ग-सस्कार करिए।' (श्लोक १४२-१४४) उनकी ऐसी बात सुनकर क्रोध से राम के पोष्ठ स्फुरित होने लगे। वे बोले-'हे दुर्जनो! मेरा भाई लक्ष्मण अभी जीवित है। तब तुम लोग ऐसा क्यों कह रहे हो ? कुटुम्ब सहित तुम लोगों का ही अग्निदाहपूर्वक मृत कर्म करना उचित है। मेरा भाई तो दीर्घजीवी है। हे भाई, हे लक्ष्मण, हे वत्स ! अब तो तुम शीघ्र बोलो। तुम्हारे नहीं बोलने से दुर्जन लोग ऐसी बातें कर रहे हैं ।
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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