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छोड़कर अपने गन्तव्य स्थल को चला गया। नगर के लोग उसके मस्तक पर पैर रखकर उसे कुचलते हुए जाने लगे। इस प्रकार उपद्रव पीड़ित होने से उसकी मृत्यु हो गई। अकाम निर्जरा के योग से मृत्यु के पश्चात् उसने श्वेतङ्कर नगर के राजा पवनपुत्रक नामक वायुकुमार देव के रूप में जन्म ग्रहण किया। अवधिज्ञान से अपनी कष्टकर मृत्यु को जानकर वह कुपित हो उठा और अयोध्या के निकटवर्ती स्थानों में नाना प्रकार की व्याधि उत्पन्न करने लगा। लोग उस व्याधि से आक्रान्त होकर आकुल-व्याकुल हो गए। द्रोणमेघ नामक मेरे एक मामा हैं। वे हमारे राज्य में ही निवास करते हैं; किन्तु उनके अधिकार में जो भी स्थान थे वहाँ और उनके घर में किसी भी प्रकार की व्याधि का प्रकोप नहीं था। मैंने जब उनसे इसका कारण पूछा तो वे बोले- (श्लोक २६९-२७३)
___'मेरी प्रियंकरा नामक रानी पहले अत्यन्त रुग्ण रहा करती थी। कुछ समय बाद उसने गर्भ धारण किया। गर्भ के प्रभाव से वह रोग-मुक्त हो गई। यथासमय उसने एक कन्या को जन्म दिया। उसका नाम विशल्या रखा गया। समस्त देशों की भाँति हमारे प्रान्त में भी रोग उत्पन्न हो गया। मैंने तब कुछ सोचकर विशल्या का स्नान-जल सब पर छिड़क दिया। उससे वे सब रोग-मुक्त हो गए। सत्यभूति नामक मुनि से मैंने इसका कारण पूछा। उन्होंने कहा यह उसकी पूर्व जन्म की तपस्या का फल है। उसके स्नान-जल से घाव सूख जाता है। अस्त्र-प्रहार और बिंधी हुई शक्ति बाहर निकल जाती है। व्याधि निरामय हो जाती है। राम के अनुज लक्ष्मण इसके पति होंगे।'
(श्लोक २७४-२७८) ___ 'मुनि के कथन से, सम्यक ज्ञान से और अनुभव से मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि यह बात सत्य है। ऐसा कहकर मेरे मामा ने मुझे विशल्या का स्नान-जल दिया। मैंने समस्त देश में वह छिड़क दिया । उससे सभी रोग-मुक्त हो गए। वही जल मैंने तुम्हारे ऊपर छिड़का है। फलतः तुम्हारी देह से शक्ति निकल गई और तुम नीरोग हो गए हो।'
(श्लोक २७९-२८१) __ 'इस प्रकार मुझे और भरत को जल के प्रभाव पर विश्वास हो गया है। अतः आप प्रभात होने से पूर्व ही विशल्या का स्नानजल लाया जा सके ऐसी व्यवस्था करिए । सवेरा होने पर आप कुछ