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________________ [11 और दृढ़ हो गया । दर्पण हाथ में होते हुए भी वह खड़ग में अपना मुख देखने लगी और निःशङ्क होकर देवों को भी आज्ञा देने लगी । बिना प्रयोजन के ही उसके मुख से परूष वाक्य निकलने लगे । गुरुजनों के सम्मुख भी उसने सिर झुकाना छोड़ दिया । विज्ञजनों के मस्तक पर पैर रखने की उसकी इच्छा होने लगी । इस भांति गर्भ के प्रभाव से वह सबके प्रति कठोर भाव रखने लगी । यथा समय उसने चौदह हजार वर्ष की आयुष्ययुक्त पुत्र को जन्म दिया उसके जन्म के समय समस्त शत्रुओं के सिंहासन कम्पित हो गए । सूतिकागृह में सोए हुए ही हाथ-पाँव चलाता हुआ वह पराक्रमी शिशु पास में ही रखी करण्डिका से नौ माणिक्य युक्त हार को जिसे कि भीमेन्द्र ने उनके पूर्वजों को दिया था खींचकर बाहर निकाल लिया और शिशु की सहज चपलता से ही उसे धारण कर लिया । कैकसी और धात्रियां इस दृश्य को देखकर चकित हो गई । कैकसी अपने पति को बोली- 'हे नाथ, जो हार राक्षसेन्द्र ने आपके पूर्व पुरुष राजा मेघवारन को दिया था, जिस हार की आपके पूर्वज आज तक पूजा करते आ रहे हैं, जिस नौ माणिक्ययुक्त हार को कोई उठा नहीं सका और निधि की तरह जिसकी एक हजार नागदेव रक्षा करते हैं उसी हार को आपके नवजात शिशु ने आज करण्डिका से खींचकर बाहर निकाला और गले में पहन लिया ।' नौ माणिक्यों में उसका मुख प्रतिबिम्बित होने के कारण रत्नश्रवा ने उसी समय उसका नाम दसमुख ( दशानन) रखा और बोला'मेरे पिता सुमाली एक बार जब चैत्यवन्दन करने मेरु पर्वत पर गए थे तब वहां एक मुनि से एक प्रश्न किया था जिसके प्रत्युत्तर में उन चार ज्ञान के धारक मुनि ने कहा था- तुम्हारे पूर्व की परम्परा से आया नौ माणिक्ययुक्त हार जो धारण करेगा वह अर्द्धचक्री अर्थात् प्रतिवासुदेव होगा ।' ( श्लोक १४४ - १६० ) कालान्तर में कैकसी ने पुनः गर्भधारण किया । गर्भधारण के समय स्वप्न में सूर्य को देखा । अतः नव जातक के होने पर उसका नाम भानुकर्ण रखा । अन्य नाम कुम्भकर्ण । फिर इसके बाद कैकसी ने एक कन्या को जन्म दिया। उसके नाखून चन्द्रमा से सुन्दर थे । उसका नाम इसलिए चन्द्रनखा रखा गया; किन्तु लोग उसे सूर्पनखा कहने लगे । कुछ समय बाद चन्द्र स्वप्न सूचित होकर कैकसी से
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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