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________________ 1903 गए। उन्हें आते देखकर राम-लक्ष्मण आदि भी युद्ध के लिए अग्रसर हुए। कुम्भकर्ण और राम, लक्ष्मण और इन्द्रजीत, सिंहजघन और नील, घटोदर और दुर्मुख, दुर्मति और स्वयम्भू, शम्भु और नल, मय और अङ्गद, चन्द्रनख और स्कन्द, विघ्न और चन्द्रोदर-पुत्र, केतु और भामण्डल, जम्बूमाली और श्रीदत्त, कुम्भ और हनुमान, सुमाली और सुग्रीव, धूम्राक्ष और कुन्द और सागर एवं चन्द्ररश्मि आदि अन्यान्य राक्षस अन्यान्य वानरों के साथ समुद्र में जिस प्रकार एक मकर अन्य मकर के साथ युद्ध करता है उसी प्रकार युद्ध करने लगे। (श्लोक १९४-१९९) भयङ्कर युद्ध होने लगा। इन्द्रजीत ने ऋद्ध होकर लक्ष्मण पर तापस अस्त्र फेंका । शत्रु को ताप देने वाले लक्ष्मण ने पवनास्त्र से अग्नि जिस प्रकार मोम को गला देती है उसी प्रकार उसे गलाकर निष्फल कर दिया। लक्ष्मण ने इन्द्रजीत पर नागपाश अस्त्र चलाया। जल में उतरा हाथी जिस प्रकार रस्सी से बाँधा जाता है उसी प्रकार इन्द्रजीत नागपाश से बँध गया। नागपाश से बँधकर इन्द्रजीत जमीन पर गिर पड़ा मानो पृथ्वी को चीर डालना चाहता हो । लक्ष्मण की आज्ञा से विराध ने उसे उठाकर रथ में डाल दिया और बन्दी की तरह उसे अपने शिविर में ले गया। राम ने भी कुम्भकर्ण को नागपाश में बाँध दिया। राम की आज्ञा से भामण्डल उसे उठाकर अपनी छावनी में ले गया। मेघवाहन आदि वीरों को बाँध-बाँधकर राम के योद्धा अपने-अपने शिविर में ले गए। (श्लोक २००-२०६) युद्ध की यह स्थिति देखकर रावण शोक से व्याकुल हो उठा। उसने क्रोधावेश में जयलक्ष्मी के मूल-सा त्रिशूल विभीषण पर फेंका। उस त्रिशूल को लक्ष्मण ने अपने बाणों से मध्य में ही कदलीखण्ड की तरह नष्ट कर डाला। तब विजयार्थी रावण धरणेन्द्र की दी हुई अमोघ विजया नामक शक्ति को आकाश में घमाने लगा। धग धग, तड़-तड़ करती हुई वह शक्ति प्रलयकाल में चमकने वाली विद्यत् की भाँति दिख रही थी। उसे देखकर देवगण आकाश से हट गए। सैनिकों ने आँखें बन्द कर लीं। कोई भी स्वस्थ रूप से वहाँ खड़ा नहीं रह सका । (श्लोक २०७-२११) उस अमोघ शक्ति को देखकर राम लक्ष्मण से बोले, 'हमारा
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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