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________________ 178] आप तो जन्म से ही भीरु है । आपने समस्त कुल को दूषित किया है । आप मेरे पिता के सहोदर कदापि नहीं हैं । आप मूर्खो की भांति इन्द्रविजयी समस्त वैभव के अधीश्वर मेरे पिता के लिए जिस प्रकार शङ्का प्रकट कर रहे हैं उससे लगता है आप सत्य ही मृत्यु के अभिलाषी हो गए हैं। पहले भी आपने मिथ्या बोलकर मेरे पिताजी को ठगा है । आपने दशरथ को मारने की प्रतिज्ञा करके भी उसे मारा नहीं । अब, जब राम यहां आ गए हैं तब आप निर्लज्ज होकर उस भूचारी का भय दिखा उसे पिताजी के हाथ से बचाना चाहते हैं । इससे लगता है, आप राम के पक्ष के हैं । राम ने आपको वश में कर लिया है । अब आप विचारसभा में सम्मिलित होने योग्य नहीं हैं । कारण आप्त मन्त्रियों के साथ जो विचार किया जाता है वही शुभफलदायी होता है । 1 ( श्लोक २३-२७) विभीषण बोले, 'मैं तो शत्रु का पक्ष नहीं हूं; किन्तु लगता है तुमने कुल शत्रु के रूप में जन्म लिया है । जन्मान्ध की भांति तुम्हारे पिता वैभव और काम में अन्धे हो गए हैं । अरे प्रो मूर्ख, तुम कल के बालक, क्या समझ सकते हो ? अग्रज, इस इन्द्रजीत पुत्र और आपके आचरण के कारण अल्प दिनों में ही निश्चय रूप से आपका पतन होगा। अब मैं आपके लिए और व्यर्थ चिन्ता नहीं करूँगा ।' ( श्लोक २८-३० ) विभीषण के ऐसे वचन सुनकर भाग्यहीन रावण को अत्यन्त क्रोध आ गया । वह भयङ्कर तलवार निकाल कर विभीषण को मारने के लिए अग्रसर हुआ । विभीषण ने भी भृकुटि तानकर अपने मुख को और अधिक भयङ्कर बना लिया । और हस्ती की तरह एक स्तम्भ को उखाड़ कर रावण के साथ युद्ध के लिए उद्यत् हो गया । यह देखकर कुम्भकर्ण और इन्द्रजीत ने बीच में पड़कर उन्हें युद्ध से रोका और महावत जिस प्रकार दो मतवाले हाथियों को उनके अपने-अपने स्थानों पर ले जाते हैं उसी प्रकार उन दोनों को उनके अपने-अपने स्थानों पर ले गए। जाते-जाते रावण बोला, 'विभीषण, तुम लङ्का छोड़कर चले आओ, कारण तुम अग्नि की भांति अपने आश्रय को विनष्ट करने वाले हो ।' ( श्लोक ३१-३४) रावण की बात सुनकर विभीषण उसी क्षण लङ्का का परि
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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