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________________ [3 को, मेरा वियोग न हो इसलिए भी तुम यहीं रहो।' कीर्तिधवल के इस प्रकार आग्रह करने पर एवं मित्र का वियोग न हो, यह सोचकर श्रीकण्ठ ने वानर द्वीप में रहना स्वीकार कर लिया। तब कीर्तिधवल ने वानर द्वीप में किष्क्रिध्या पर्वत पर स्थित किष्किन्धा नगरी को राजधानी रूप में स्थापित कर वहाँ श्रीकण्ठ का राज्याभिषेक कर दिया । श्रीकण्ठ ने एक दिन उस द्वीप पर फलभक्षी बलिष्ठ देहवाले अनेक सुन्दर वानरों को देखा । उसने केवल उनकी हत्या न की जाय यही आदेश नहीं दिया बल्कि नियत स्थान पर नियत समय पर फल जलादिक की भी व्यवस्था कर दी। राजा को उनका सत्कार करते देखकर प्रजा भी उनका सत्कार करने लगी। कारण यथा राजा तथा प्रजा । तदुपरान्त वहाँ के विद्यागर कौतुकवश चित्रों में, लेप्य में, ध्वजा में, छत्रादि में वानर चिह्न अकित करने लगे। वानर द्वीप में निवास करने के कारण और सर्वत्र वानर चिह्न अंकित करने के कारण वहाँ के विद्याधर वानर नाम से प्रसिद्ध हुए। (श्लोक २५-३५) श्रीकण्ठ के एक पुत्र हुआ । उसका नाम बज्रकण्ठ रखा गया। वह युद्धक्रीड़ा में आनन्द पाता । अतः उस क्रीड़ा में वह प्रवीण हो गया। (श्लोक ३६) ___ एक दिन श्रीकण्ठ जबकि सभामण्डप में बैठे थे तब उन्होंने देवों को शाश्वत अर्हतों के पूजन के लिए नन्दीश्वर द्वीप जाते देखा । राजपथ पर अश्व को जाते देख ग्राम्य पथ के अश्व भी जिस प्रकार उसके पीछे हो जाते हैं उसी प्रकार श्रीकण्ठ ने भी देवों का अनुसरण किया। राह में पर्वत आ जाने से जिस प्रकार वेगवती नदियों की गति अवरुद्ध हो जाती है उसी प्रकार मानुष्योत्तर पर्वत पर उनकी गति रुद्ध हो गयी। श्रीकण्ठ ने सोचा-मैंने पूर्व जन्म में अधिक तप नहीं किया इसीलिए नन्दीश्वर द्वीप के शाश्वत तीर्थंकरों के दर्शन की मेरी इच्छा पूर्ण नहीं हुई । इस प्रकार विचार करते हुये संसार से विरक्त होकर उन्होंने वहीं दीक्षा ग्रहण कर ली और कठोर तपश्चरण कर मोक्ष को प्राप्त किया। (श्लोक ३७-४१) श्रीकण्ठ के पश्चात् बज्रकण्ठ आदि कितने राजा आए और गए । अन्त में मुनि सुव्रत स्वामी के तीर्थ में वानर द्वीप में घनोदधि नामक एक राजा हुए। उस समय राक्षस द्वीप पर तड़ित्केश नामक
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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