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________________ 52] उन्होंने उसी समय अपने कारागार के द्वार उन्मुक्त कर दिए । यहां तक कि अपने शत्रुओं को भी मुक्त कर दिया। फलतः बन्धन केवल हस्ती आदि को ही रहा । इन्द जिस प्रकार शाश्वत जिन-बिम्बों की पूजा करते हैं उसी प्रकार राजा ने भी जिन-मन्दिर में जाकर जिन-मूर्ति की अद्भुत पूजा की । याचकों में स्व-पर का भेद न कर उन्हें धन दान से प्रसन्न किया। कारण, उद्यत मेघों की जलधार सव पर समान वर्षा करती है। खटे से खुले गाय-वत्स की तरह उछलने वाले विद्यार्थियों के साथ अध्यापक सूत्रमातृका का पाठ करते हुए वहां पाए। कहीं ब्राह्मणों की वेदोचित मन्त्र की उच्च ध्वनि होने लगीं, कहीं लग्नादि के विचार से उत्कृष्ट मुहूर्त सम्बन्धी उक्तियां होने लगीं। कहीं कुलीन कामिनियों का समूह हर्ष उत्पन्नकारी ध्वनि में गीत गाने लगीं। कहीं वीरांगनाओं की मंगल गीतध्वनि सुनाई पड़ने लगी। कहीं बन्दियों की कल्याण कल्पना के समान महाकोलाहल होने लगा। कहीं चारण आदि का सुन्दर द्विपथक-आशीर्वाद ध्वनि सुनायी पड़ने लगी तो कहीं चेटक (सेवक) हर्ष जन्य उच्च स्वर में बात चीत करने लगे तो कहीं याचकों के आगमन से उग्र बने छड़ीदारों का कोलाहल सुनायी देने लगा। इस भांति वर्षाकालीन मेघ से भरे आकाश से उठे गर्जन की तरह राजगह के प्रत्येक प्रांगन में विभिन्न प्रकार के शब्द प्रसारित होने लगे। (श्लोक ५३०-५४२) नगरजन कहीं कूकुम आदि का लेप करने लगे। कहीं कोई रेशमी वस्त्र पहनने लगे, कहीं कोई दिव्य माल्य के अलङ्कारों से अलंकृत होने लगे । कहीं कपूर डाले पान से लोग प्रसन्न होने लगे। कहीं घर के प्रांगन में कुछ कुकुम छिड़कने लगे। कहीं नील कमल की तरह मुक्ता के स्वस्तिक अंकित करने लगे। कहीं कुछ नवीन कदली वृक्ष के स्तम्भों पर पत्रों की झालर लटकाने लगे तो कहीं पत्रों की झालर के दोनों ओर वे स्वर्ण कुम्भ रखने लगे। उसी समय साक्षात् ऋतु लक्ष्मी-सी फूलों से गुम्फित वेणीयुक्त पुष्पमालाओं से कवरी को वेष्टित किए गले में हिलती हुई पुष्पमाल्य पहने नगर की गन्धर्व सुन्दरियां देवांगनाओं की तरह तालस्वर सहित गीत गाने लगीं। रब्न के कर्णाभरण, भुजबन्ध, कण्ठहार, कंकरण और नुपूरों से वे रत्न पर्वत की देवियों की तरह शोभा पा रही थीं। उसी समय नगर की कुलवती स्त्रियां भी पवित्र दूर्वा
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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