SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 186] पर निर्वाण-समय निकट जानकर प्रभु ने सम्मेद शिखर की ओर विहार किया। उनकी बहत्तर लाख पूर्व की आयु समाप्त होने आई। अतः उन्होंने एक हजार श्रमणों के साथ पादोपगमन अनशन व्रत ग्रहण किया। उसी समय समस्त इन्द्रों के आसन पवनान्दोलित उद्यान की वृक्ष शाखाओं की तरह हिलने लगे। उन्होंने अवधिज्ञान से प्रभु का निर्वाण-समय अवगत किया। वे भी सम्मेद-शिखर पर्वत पर पाए । वहाँ उन्होंने देवों सहित प्रभु की प्रदक्षिणा दी और शिष्यों की भाँति सेवा करने के लिए प्रभु के निकट बैठ गए । जब पादोपगमन अनशन का एक मास व्यतीत हो गया तब चैत्र शुक्ला पञ्चमी को मृगशिरा नक्षत्र पाया। उस समय पर्यकासन में स्थित प्रभु बादर काययोग रूपी रथ में बैठकर और रथ में लगे दो अश्वों की तरह बादर मनोयोग में अवस्थित हो गए। सूक्ष्मकाय योग से प्रदीप से जैसे अन्धकार समूह निवारित होता है उसी प्रकार उन्होंने बादर काययोग का निरोध किया और सूक्ष्म काययोग में प्रवस्थित होकर बादर मनोयोग और वचनयोग को निरुद्ध किया । तदुपरान्त सूक्ष्म मनोयोग और वचनयोग में स्थित होकर सूक्ष्मक्रिय नामक शुक्लध्यान के तृतीय पद को प्राप्त हुए। पश्चात् शुक्लध्यान के चतुर्थ पद शैलेशीकरण मात्र में पाँच लघु अक्षर उच्चारण किया जा सके इतने से समय तक रहे । वहीं शेष कर्मक्षय हुए और अनन्त चतुष्टय सिद्ध हो गया एवं वे परमात्मा प्रभु ने ऋजुगति से लोकाग्र अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लिया। (श्लोक ६७१-६८२) प्रभु कौमार्यावस्था में अठारह लाख पूर्व, राज्य स्थिति में एक पूर्वांग सहित त्रेपन लाख पूर्व, छद्मस्थावस्था में बारह वर्ष, और केवलज्ञान में एक पूर्वांग और बारह वर्ष कम एक लाख पर्व तक रहे। सब मिलाकर बहत्तर लाख पूर्व की आयु भोगकर ऋषभ प्रभु के निर्वाण के पचास लाख कोटि सागरोपम के बाद अजितनाथ प्रभु मोक्ष को प्राप्त हुए। उनके साथ अन्य एक हजार मुनिगण जिन्होंने कि पादोपगमन अनशन व्रत ग्रहण कर लिया था केवलज्ञान प्राप्त कर तीन योगों को निरुद्ध कर मोक्ष को प्राप्त किया। सगर मुनि भी केवली समुद्घात कर क्षणमात्र में अनुपदी की तरह स्वामी द्वारा प्राप्त पद अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हुए । (श्लोक ६८३-६८७) प्रभु के उस मोक्ष कल्याणक के समय कभी भी सुख का मुख
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy