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________________ तरवभावना [६७ का कारण है । तत्वभावना का महान घातक यह कामदेव है। श्री पधनंदि मुनि ब्रह्मचर्य रक्षा में ऐसा कहते हैं : चेतो भ्रांतिकरो नरस्य मदिरा प्रीतियथा स्त्री तथा । तत्संगेन फुतो मनेर्वतविधिः स्तोकोऽपि संभाव्यते ॥ तस्मात्संसृतिपातमीसमतिभिः प्राप्तस्तपोभूमिकाम् । कर्तव्यो प्रतिभिः समस्तयुवतित्यागे प्रयत्नो महान् ।। भावार्थ-जैसे मदिरा मनुष्य के चित्तमें भ्रांति पैदाकर देती है वैसे ही स्त्री की प्रीति मनको बावला बना देती है। ऐसी स्त्री को संगति में किस तरह थोड़ा भी मुनिका पत संभव हो सकता है ? इसलिए जो संसार सागर में डूबने से भयवान हैं और तप की भूमि में प्राप्त हो चुके हैं ऐसे प्रतियों को उचित है कि सर्व स्त्रियों के त्याग में महान उद्यम रखें । मन की शुद्धि काम भाव के त्याग से ही होती है। मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द यम सम दुर्वारं काम कृमिचाविकारं । जगत जनोंको है पोड़ता हन अपारं ॥ पशु देव सु वीरं वृद्ध मुनि शानघारं। प्राणो सब मोहे कामको कर निवारं ॥२१॥ उस्थानिका--आगे कहते हैं कि इस कामभाव को वैराग्य व आत्मध्यान से जीतना उचित है। शश्वदुःसहदुःखवानचतुरो वैरी मनोन रयम् । ध्यानेनैवनियम्यते न तपसा संगेन न शानिनाम् । बेहात्मव्यतिरेकबोधमनितं स्वामाविक निश्चलं ।
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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