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भिन्न - २ गतियोंको जायेंगे। इनको अपना मानना महान मूर्खता हैं। ये सब कुछ सम्बन्ध रखते हैं तो वह सम्बन्ध इस शरीर के साथ है । शरीर के उत्पन्न करनेवाले को माता पिता कहते हैं । एक माता के पुत्र पुत्रियों को भाई बहन कहते हैं, शरीर को ही देखकर ऐस जगत के पुजारी अपने केटा होकर हमारी देहसे प्रीति दिखलाते हैं। जब हमसे स्वार्थ नहीं निकलता है तब बात भी नहीं पूछते हैं । आचार्य कहते हैं कि इन पदार्थों के स्नेह टूटने की व छूट जाने की बात क्या करते हैं । ये तो प्रगट ही जुदे हैं । अरे ! यह शरीर जो जन्म से मरण तक साथ रहता है और जिसको नाना प्रकार भोजन पान देकर खिलाते पिलाते, सुलाते, पहनाते, उठाते, पालते व जिसके लिए पेसा कमाते व रात दिन उसी की ही चितामें लगे रहते कि कहीं यह चिगड़ न जावे, ऐसा शरीर भी एक क्षणमात्र में हमें छोड़ देता है। आयुकर्म के आधीन देह का सम्बन्ध है । आयुकर्म का नाश होते ही एक समयभर भी यह शरीर आत्मा का साथ नहीं दे सकता । तब जो लोग इस देह के साथ व देह के सम्बन्धी स्त्री पुत्रादि के साथ ऐसी दोस्ती बांधते हैं कि मानो हम इनके है व ये हमारे हैं वे लोग अवश्य मूर्ख हैं क्योंकि इनके मोह में अन्धे हो वे अपने आत्माके हितको भूल जाते हैं। वे कभी दिन रात में एक क्षण भी आत्मा के हित का चिन्तवन नहीं करते हैं इसलिए आचार्य कहते हैं कि यदि तुम चतुर मनुष्य हो तो नाशवन्त पदार्थों से क्यों स्नेह बढ़ाकर अपना बुरा करते हो ? इन पदार्थों का सम्बन्ध यदि है तो इनसे अलिप्त रहते हुए इनसे अपना प्रयोजन साधलो व उनका यथासम्भव उपकार कर दो। परंतु उनके • साथ भीतरी प्रीति न रक्खो, इनकी प्रीति अन्त में धोखा देनेवाली
सस्वभावना