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करायान सामान
था विधि मैं जिन संघरूप चउवीस संख्यघर । स्तवू न हूं बारबार बन्दू शिव सुखकर ॥२०॥
५. पंचम बंदना कर्म बन्वं मैं जिनवीर धीर महावीर सु सनमति । वर्द्धमान प्रतिवीर बन्दि हं मन वचतनकृत ॥ त्रिशलात्तनुज महेश धीश विद्यापति बन्दूं । बंको निःा प्रति कनक रूप तनु पापनिकंदू ॥२१॥ सिद्धारण नानंद इंद दुख दोष मिटाधार । दुरित दबानल ज्वलित ज्वाल जगजीष उधारन । टुण्डल पुर करि जन्म जगत त्रिय प्रानन्द कारन । वर्ष बहतर प्रायु पाच सब ही दुख दारन ॥२२॥ सप्तहस्त तनु तुझभंगकृत जन्ममरण भय । वाल ब्रह्म मय ज्ञेय हेय प्रादेय ज्ञानमय । दे उपवेश उघारि तारि भवसिंधु नोवधन । पाप बसे शिवमांहि ताहि बंदौ मन वच तन ॥२३॥ जाके बंदन थको दोष दुख दूरहि जाद। जाके वंदन थकी मुक्तितिय सन्मुख पावे । जाके बदन थकी वैद्य होवें सुरगन के। ऐसे वीर जिनेश बन्दि हूं क्रम युग तिनके ॥२४॥ सामायिक षटकममाहि बंदन यह पंचम । चंदों घोर जिनेंद्र इंद्रशतवंद्य वंद्य मम ।। जन्म मरण भय हरो करो अघ शांति शान्तिमय । मैं अध कोष पोष दोष को दोष विनाशय ॥२५॥