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________________ ३३६ ] आत्मध्यान का उपाय अपने आलम में सिष्ठे है रहित सकल मल पासी। उसो देवको अपना लखकर शरणा लो भवत्रासी ॥१६ विलोक्यमाने सति यन्त्र विश्वं, विलोक्यते स्पष्टमिव विविक्तम् । शवं शिवं शान्तमनायनन्त, तं देवमाप्तं शरणं प्रपो॥२०॥ जिसमें देखत ज्ञान दर्श से सकल जगत प्रतिभा से । भिन्न भिन्न षटद्रव्यमयी गुण पर्ययमय समता से॥ शुद्ध शांत शिवरूप अनादो जिन अनंत फटिकासे। उसी देवको अपना लखकर शरणा ली सुख भासे ॥२०॥ पेन आता मन्मपमानमूर्धा, विषावनिद्रामयसोविता । भयोऽनलेनेव तत्प्रपन्च-- स्तं शेवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ॥२१॥ जिसने नाश किये मन्मथ अभिमान परिग्रह भारी। मन विषाद निद्रा भय चिता रती शोक दुःखकारी ।। जैसे वृक्ष समूह जलावत बन अग्नी भयकारी। उसी देव को अपना लखकर शरणा लो सुखकारी ॥२॥ न संसारोऽश्मा न तणं न मेदिनी विधानतो नो फलको विनिर्मितः यतो निरस्तानकषायविद्विषः . सुधीभिरात्मक सुनिर्मलो मतः॥२२॥
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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