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________________ ३२४ ] आत्मध्यान का उपाय जब अभ्यास से पूर्ण हो जावे तब दूसरे प्रकारके ध्यानका अभ्यास करे । ध्यानका प्रयोजन आत्मस्थ होना है । जिस तरह यह प्रयोजन सिद्ध हो उसी तरह ध्यानी को अभ्यास करना चाहिए। ध्यान ही से परमानन्द का लाभ होता है व कर्मों की निर्जरा होती है। प्राणायाम की विधि शरीरकी शुद्धि तथा मनको एकाग्र करने के लिए प्राणायाम का अभ्यास सहायक है। यद्यपि वह ऐसा जरूरी नहीं है कि इसके बिना आत्मध्यान न हो सके इसलिए जिसने किसी प्राणानामकेावा नहीं सीखा है वह भी ज्ञान व आत्म बलसे आत्मध्यान कर सकता है । उसका मन स्वयं ही ही बिना किसी आकुलता के रुक जाता है । जैसा ज्ञानार्णय में कहा है संविग्नस्य प्रशांतस्य वीतरागस्य योगिनः । वशीकृतावर्गस्य प्राणायामो न शस्यते ॥८॥ भावार्थ - विरक्त, शांत, वीतरागी व जितेन्द्रिय योगों के लिए प्राणायाम की आवश्यकता नहीं है । कभी-कभी इससे कष्ट भी होता है। जैसा कहा है प्राणस्यायमने पीडा तस्यां स्यावातसंम्भवः । सेन प्रस्यान्यसे ननं ज्ञाततत्त्वोपि लक्षितः || || भावार्थ - प्राणायाम में प्राण या श्वासको रोकने से पीड़ा होती है, पीड़ा से कार्तध्यान होना सम्भव है इससे तत्वज्ञानी भी अपने शद्ध भावोंके लक्ष्यसे छूट जाता है ।
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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