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आत्मश्यान का उपाय
लटके हुए जंघा तक चले आवें व सीधी मूर्तिरूप खड़ा रहे उसको दण्डासन व कायोत्सर्ग आसन कहा गया है।
उत्तानबामचरणं दक्षिणाणि विन्यसेत् । उत्तानयाभ्यवरणं वामोणि निवेसयेत् ॥ तस्मध्याधोर्ध्वगोत्तानवामवामेतरौ करौ। स्थित्वा निश्चलयोगेन नासाग्रमवलोकयेत् ।। इदं पद्मासने प्राहुः मुख्य पूजाविकर्मसु । मावार्थ-बाएँ चरण को उठाकर दाहिनी जांघ पर रक्खे व दाहने चरण को उठाकर बाई जांध पर धर, उनके मध्य में नीचे बायाँ हाथ रखके ऊपर दाह्ना हाथ रखे तथा निश्चल बैठे और नासाग्न दृष्टि हो सो पद्मासन कहा गया है। पूजा आदि कार्यों में यह मुख्य है।
वामपावस्य गुल्फन पाम्यपवगल्फकं न्यसेत, तस्योधिः स्थितीत्तानयामोत्तरकरोपरे। वामोत्तरं करं स्थित्वा नासाग्रमवलोकयेत्, पल्यंकासनमित्याहुः सर्वपापनिवारणं ॥ भावार्य-बाएं पैर की गुल्फ या टोहनी के साथ मिलाकर दाहने पैर की टोहनी को बाएँ पग की जांघ पर रक्खे फिर गोदमें बाएँ हाधके ऊपर दाहना हाथ रक्खे । नासाग्र देख्ने सो पल्यंका सन सर्व पाप दूर करने वाला है।
मल्लिषेण कृत विद्यानुवाद मंत्र शास्त्र में लेख है कि २४. तीर्थकर पल्यंकासन तथा कायोत्सर्गासनसे मोक्ष गए । जैसे
ऋषभस्य वासपूज्यस्य नेमेः पल्यंकबध्नता।
कायोत्सर्गस्थितानां तु सिद्धिः शेषजिनेशिमा ।। अर्थात् ऋषभदेव, वासपूज्य तथा नेमिनाथ तो पत्यकासलसे मोक्ष गए व २१ जिन कायोत्सर्ग से मोल गए।