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________________ आत्मध्यान का उपाय भावार्थ--धीरवीर समाधि की सिद्धि के लिए काष्ठ का तखता, शिला, बालुरेतका स्थान या भूमि इनमेंसे किसी में भले प्रकार स्थिर आसन जमावे । (४) आसन का विचार आसन शरीर को जमाकर रखता है इसलिए किसी न किसी आसन से बैठकर या खड़े होकर ध्यान करना चाहिए। कहा है पर्यकमबंपर्यकवचं बोरासनं तथा। सुखारविन्यपूर्वे च कायोत्सर्गश्च सम्मतः ॥१०॥ येन येन सुखासीना विवष्यनिएपलं मनः । तत्तव विधेयं स्यान्मुनिभियाधुरासनम् ॥११॥ कामोत्सर्गश्च पर्यः प्रशस्तं कश्चिवीरितम् । वेहिनां वीर्यवैफल्याकालदोषेण संप्रति ॥१२॥ भावार्थ—पर्यंक भासन, अर्द्धपर्यंक आसन, वज्रासन, योरासन, सुखासन, कमलासन और कायोत्सर्ग ध्यानके योग्य आसन माने हैं। जिस किसी आसन से ध्यानी अपने मनको स्थिर कर सके उसी सुन्दर आसनको ले लेना चाहिए। इस समय काल दोष से शक्ति कम होने से कायोत्सर्ग और पर्यंक इन-२ आसनों को ठीक कहा हैमासन जमाने से मन स्थिर हो जाता है। कहा है अथासमअयं योगी करोतु विजितेन्द्रियः। मनागपि न खिचन्ते समाधौ सुस्थिरासनाः ॥३०॥ वातातपतुषाराजंतुजारिनेकशः।। कृतासनजयो योगी खेरितोऽपि न खिचते ॥३२॥ भावार्य-इन्द्रियों को जोतने वाला योगी आसन को जीते। जिनका आसन स्थिर होता है उनको ध्यान करते हुए खेद नहीं
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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