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________________ २१८ ] ही पैदा होगा | चावल के चाहने वालेको चावल हो बोना उचित है। प्रयोजन यह है कि ज्ञानीको तुच्छ सुखके लिए तप ऐसे महान परिश्रमको न करके मात्र आत्माधीन पवित्र सुखके लिए व सदा काल के लिए बन्धनों से मुक्त होने ही के लिए तप करना योग्य है। श्री शुभचन्द्राचार्य ज्ञानार्णव में मोक्षप्राप्ति के लिए ज्ञानपूर्वक तप करने की शिक्षा देते हैं तत्वभावमा आत्मायत्तं विषयविरसं तस्वचिन्तायलीनं । मिर्ष्यापारं स्वहितनिरतं निर्वृतानन्दपूर्ण ॥ शाताखं शमयनतपोध्यान लब्धावकाशं । कृत्यात्मानं कलय सुमते दिव्यबोधाधिपत्यम् ॥ २८ ॥ · भावार्थ - हे सुबुद्धि ! अपने आत्माको स्वाधीन करके व इंद्रियोंके विषयोंसे विरक्त होकर तत्वकी चिता में लोन होकर, संसारिक व्यापारोंसे रहित होकर व आत्महित में तल्लीन होकर व निराकुल मानन्दमें पूर्ण होकर, ज्ञानके भीतर आरूढ़ होकर, शांतभाव, मनका दमन व तप तथा ध्यान में प्रवृत्ति करके तु केवलज्ञानका स्वामी बन । वास्तव में इच्छा रहित आत्मध्यान ही परमात्मा के पदके लाभका उपाय है । मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जो बाहर धन आदि हेतु तपता सो बाह्यको पात्रता । जो निजआतम हेतु ध्यान करता शुचि आत्माको पावता | जो कोवोंको बोता नहि कभी वह सालिको पाता । ऐसा जान विशाल बुद्धिकारी निज कार्य उर लावता ॥ ८४॥ उत्पानिका — आगे कहते हैं कि अज्ञानी लोग धन मादि H
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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