________________
जत्नभावना
[ १३६ .
धर्मका विस्मरण किसीभो समय न करना चाहिए। श्रीपधनंदि मुनि धर्मोपदेशामृतमें कहते हैं
विहायच्यामोहं धमसदनतन्वादिविषये। कुष्ठर तणं किमपि निजकार्य वतधा भयेनेदं जन्म प्रभवति सनत्वाविघटना। पुनः स्याम्नस्यादा किमपरवषोऽवगतः ।।५।।
भावार्थ-हे बुद्धिमानो । धन, गृह, शरीरादि के सम्बन्ध में ममताको छोड़कर शीघ्र ही अपने भात्महितके कार्य को करो जिससे यह संसार न बढ़ने पावे क्योंकि फिरसे यह उत्तम मनुष्य जन्म आदि की प्राप्ति हो वा न हो पर्ष की बातों के बनाने से क्या लाभ होगा।
प्रयोजन यह है कि कैसी भी अवस्थामें हो, धर्म साधन को सदा ध्यानमें रखना चाहिए ।
___ मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडति छन्द जो निज देह मयी कुभोग रत हो निज वेहको पालता । सो म्रख निज आस्मकार्य हित को कुछ भी नहीं साधता ।। जो बाकर भयभीत हो नित रहे निज स्वामि कारज करे। सो निज हितको मुलनास सहसा निज जन्म पूरा करे ४०
उस्थानिका--आगे कहते हैं कि धनादि पदाथों में लीनता मोक्ष के साधनों में बाधक है--
लक्ष्मीकोतिफलाकलापललनासोभाग्यमाग्योबास्त्वषी समारह सकला तासि |