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________________ ७८ सुभाषितसंदोहः 287) विगतदशनं शरवल्लाला 'स्रयाकुलस्क्कर्क स्खलितचरणाक्षेपं वक्त्रापरि स्फुटजल्पनम् । रहितकरणव्यक्तारम्भं मृक्कतमूर्धजं पुनरपि नरं पापा बालं करोतितरां जरा ॥ १९ ॥ 288) अहह नयने 'मिथ्यादृग्वत्सदीक्षणर्याजते श्रवणयुगलं दुष्पुत्रो वा शृणोति न भाषितम् । स्खलति चरणद्वन्द्वं मार्गे मदाकुललोकबद् वपुषि अरसा जीर्णे वर्णो व्यपैति कलत्रयत् ॥ २० ॥ १० [ 288 : ११-२० पविलोचनं, रविम् इव तमोयुक्तं यमं यथा च दण्डाश्रितं करोतितराम् ॥ १८ ॥ पापा जरा नरं विगतदशनं शरवल्लालास्रवाकुलसृक्कर्क, स्खलितच रणाक्षेपं वक्त्रापरिस्फुटजल्पनं रहितकरणव्यक्तारम्भं मृगकतमूर्धजं पुनरपि बालं करोतितराम् ॥ १९ ॥ अहह, वपुषि जरसा जीर्ण नयने मिथ्यादृग्यत् सदीक्षणवर्जिते । श्रवणयुगलं दुष्पुत्रो वा भाषितं न शृणोति चरणद्वन्द्व मदाकुललोकवत् मार्गे स्वलति । वर्णः कलत्रवत् व्यर्पति ॥ २० ॥ षरात्रये जनीजनाः नदीयम् अकृत्रिमं रूपं दे देती है । देखो - जिस प्रकार ऋषि मद रहित होते हैं। उसी प्रकार यह जरा मनुष्यको विमद- वीर्यरहित बना देती है। जिस प्रकार श्रीकृष्ण गदा अस्त्रसे चिह्नित हैं, उसी प्रकार यह जरा मनुष्यको गद-रोगसे युक्त बना देती हैं। जिस प्रकार चंद्रका बिब लांछन युक्त होता है, उसी प्रकार यह जरा मनुष्यके मुखको लांछन युक्त बनाती है । जिस प्रकार महादेव विशिष्ट रूपधारो विशिष्ट लोचन त्रिनेत्रधारी होता है उसी प्रकार यह जरा मनुष्यको कुरूप और दृष्टि रहित बनाती है। जिस प्रकार सू अंधकार से मुक्त हो जाता है उसी प्रकार यहाँ जरा मनुष्यको तममुक्त निद्रासे रहित बना देती है। जिस प्रकार यमदेव दंडधारी होता है उसी प्रकार यह जरा मनुष्यको दंडधारी बनाती है || १८ | अथवा यह जरा मनुष्यको बालकके समान बना देती है। जैसे बालकके मुखमें दाँत नहीं होते, वृद्धके मुख में भी दाँत नहीं होते हैं । जिस प्रकार बालकका मुँह सदा लारसे व्याप्त रहता है, सूक्क कहिये ओठोंके भाग हिलते रहते हैं, उसी प्रकार वृद्धके मुखसे भी लार-कफ गलता रहता है । ओठोंके भाग हिलते है । जिस प्रकार बालक चल नहीं सकता, चलनेकी धड़पड़ करता है तो बार बार गिरता है। उसी प्रकार वृद्ध पुरुष पनिमें शक्ति न होनेसे चल नहीं सकता । चलनेको छटपट करता है तो बारबार गिरता है । जिस प्रकार बालक टूटे-फूटे बोल बोलता है स्पष्ट बोल नहीं सकता। उसी प्रकार वृद्ध पुरुष भी स्पष्ट नहीं बोल सकता । जिस प्रकार बालककी इंद्रियां कमजोर होनेसे अच्छी तरह कार्य नहीं करती, उसी प्रकार वृद्ध पुरुषकी इंद्रियाँ भी कमजोर होनेसे काम नहीं करती । जिस प्रकार बालकके केश कोमल होते हैं । उसी प्रकार वृद्ध पुरुषके केश भी सफेद होनेसे कोमल बनते हैं ।। १९ ।। वृद्धावस्थामें मनुष्यके नेत्र मिथ्यादृष्टि के समान सम्यग्दृष्टिसे ( स्पष्ट देखनेसे ) रहित होते हैं। जिस प्रकार दुष्ट पुत्र पिताकी बात नहीं सुनता उसी प्रकार वृद्ध पुरुषके कान दूसरेका कहना नहीं सुन सकते। जिस प्रकार मदोन्मत्त पुरुष चलते समय मार्गमें इधर उधर गिरता है उसी प्रकार वृद्ध पुरुषके पाँव चलते समय मार्ग में इधर-उधर पड़ते हैं। जिस प्रकार मनुष्यके जरासे जीर्ण होने पर उससे युवती स्त्री दूर भागती है, उसी प्रकार वृद्ध पुरुषकी अंगकांति उससे दूर भागती · १ स लाला ताकुल, लालांस्तता २स सुक्कं । ३ स स्वलति । ४ स चरण चरणापेक्षं । ५ मुखापरि मुखा: " । ६ स पापावाल । ७ स मिथ्या दुग्ग° ८ स भाषते । ९ स व्यपेत्म | १० स कुलत्रवत् ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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